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दिल्ली छोड़ प्रदेश की राजनीति करेंगे मोदी के पांच सहयोगी

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नरेंद्र, प्रहलाद, राकेश, उदय और रीति की राज्य की सियासत में क्या होगी भूमिका, कौन किस जिम्मेदारी के लिए रहेगा फिट…… खास रिपोर्ट

ग्वालियर। मध्य प्रदेश विधान सभा के चुनाव परिणाम आए चार दिन हो गए हैं। हालांकि सूबे का मुखिया कौन होगा यह सवाल भविष्य के गर्भ में छिपा हुआ है। लेकिन दिल्ली की राजनीति में अपने पैर जमाने वाले नेता अब प्रदेश में अपना वजूद बनाएंगे। विधायकी का चुनाव जीतने के बाद प्रधानमंत्री की टीम के पांच सदस्यों ने संसद की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया है। अब उनकी सियासत प्रदेश स्तर पर चलेगीं देखना होगा कि अब किसे क्या भूमिका में उतारा जाएगा और वे नई जिम्मेदारी में कितने फिट बैठेंगे।
विधानसभा चुनाव जीतने वाले दो केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और प्रहलाद पटेल के साथ तीनों सांसद राकेश सिंह, राव उदय प्रताप सिंह और रीति पाठक ने बुधवार को लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। अब साफ हो गया है कि इन पांचों नेताओं की भूमिका मध्य प्रदेश में ही रहेगी। इन सभी को सरकार या संगठन में नई जिम्मेदारी देने की कवायद दिल्ली में चल रही है।

देश के एक प्रमुख समाचार-पत्र ने मध्य प्रदेश की राजनीति को नजदीक से समझने वाले एक्सपर्ट से बात कर जाना कि इस्तीफा दे चुके इन पांचों सांसदों की अब क्या भूमिका हो सकती है…
नरेंद्र सिंह तोमर
मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं। अगर शिवराज सिंह चौहान ही मुख्यमंत्री बने रहते हैं तो विधानसभा अध्यक्ष पद तोमर के लिए एक विकल्प हो सकता है। क्योंकि पार्टी वरिष्ठता के लिहाज से उप मुख्यमंत्री सहित कोई दूसरा पद ठीक नहीं मानेगी। हां, संगठन में बदलाव होता है तो प्रदेश अध्यक्ष का विकल्प भी उनके लिए खुला रहेगा। तोमर संघ, पार्टी आलाकमान व शिवराज सिंह की पसंद भी हैं। दो विधानसभा चुनाव में अनुकूल परिणाम देने के बाद तोमर को इस बार चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया गया था। तोमर की पहचान सबसे तालमेल रखने वाले नेता की है। चुनाव के दौरान बेटे का वीडियो सामने आने के बाद जरूर इनकी जिम्मेदारी को छोटा रखा जा सकता है।“
राजनीतिक विश्लेषक राकेश दीक्षित कहते हैं, ’तोमर मोदी सरकार के पांच बड़े मंत्रियों में से एक हैं। उनके कद के हिसाब से प्रदेश में सिर्फ मुख्यमंत्री का पद है। वे सिर्फ विधायक बनने के लिए नहीं आए हैं।’ वैसे तोमर शिवराज सिंह चौहान और बाबूलाल गौर की सरकार में मंत्री रह चुके हैं। ऐसा पहले भी दो बार हो चुका है। कैलाश जोशी 1977 में छह महीने के लिए मुख्यमंत्री बने, लेकिन 1990 में सुंदरलाल पटवा की सरकार में मंत्री बने। ऐसा बाबूलाल गौर के साथ भी हो चुका है।
प्रहलाद पटेल
मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार। उप मुख्यमंत्री भी विकल्प हो सकता है। उन्हें किसी बड़े विभाग का मंत्री भी बनाया जा सकता है। प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी भी सौंपी जा सकती है।
लोधी समाज के पटेल को विधानसभा चुनाव के दौरान संगठन ने महाकौशल और बुंदेलखंड की सीटों पर प्रचार करने की जिम्मेदारी भी सौंपी थी। पटेल की भूमिका को लेकर वरिष्ठ पत्रकार एनके सिंह भी मानते हैं कि उन्हें लेकर कोई विवाद नहीं है। उन्हें यदि मंत्री भी बनाया जाता है तो उनका कद कम नहीं होगा।
राकेश सिंह
प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं, कैबिनेट मंत्री बनाए जा सकते हैं। जबलपुर से चार बार के सांसद हैं। राकेश सिंह पहली बार विधानसभा का चुनाव जीते हैं। उन्होंने 10 साल बाद जबलपुर पश्चिम सीट भाजपा की झोली में डाली। उन्हें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का करीबी माना जाता है। वे लोकसभा में भाजपा के चीफ व्हिप भी रह चुके हैं।
राव उदय प्रताप सिंह
प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाए जा सकते हैं। होशंगाबाद से तीन बार (पहली बार कांग्रेस से) सांसद रहे हैं। उन्हें राज्य मत्रिमंडल में अहम विभाग मिल सकता है। सिंह ने 2013 में होशंगाबाद के सांसद के रूप में अपना इस्तीफा दे दिया था और कांग्रेस से अपना नाता तोड़ लिया था। 2014 और फिर 2019 के चुनावों में होशंगाबाद सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। इससे पहले वे एक बार विधानसभा के सदस्य भी रह चुके हैं।
रीति पाठक
महिला कोटे से मंत्रिमंडल में मिल सकता है अहम विभाग। 2010 से 2014 तक जिला पंचायत अध्यक्ष रही हैं। इसके बाद 2014 में पहली बार लोकसभा चुनाव जीता। 2019 में दूसरी बार जीत कर वे संसद पहुंचीं। पार्टी के वरिष्ठ नेता और विधायक केदारनाथ शुक्ला की बगावत के बावजूद इस सीट पर भाजपा को जीत दिलाई। इन्हें भी मंत्रिमंडल में अहम विभाग मिल सकता है।
इनपुटः भास्कर डॉट कॉम

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