तानसेन समारोह : महोत्सव के तीसरे दिन प्रातःकालीन सभा में हुई एक से बढ़कर एक प्रस्तुति
ग्वालियर। शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में देश के सर्वाधिक प्रतिष्ठित महोत्सव “तानसेन संगीत समारोह” के शताब्दी आयोजन के तीसरे दिन मंगलवार को प्रातःकालीन संगीत सभा में ब्रम्हनाद के शीर्षस्थ साधनों ने अपने गायन-वादन से रसिकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
संगीत सभाओं का शुभारम्भ पारम्परिक रूप से ईश्वर को अर्पित ध्रुपद गायन के साथ हुआ। तानसेन संगीत महाविद्यालय, ग्वालियर के विद्यार्थियों द्वारा राग देसी ताल चौताल में निबद्ध बंदिश रघुवर की छवि सुन्दर…. से भगवान श्री राम के प्रति अनन्त आस्था एवं श्रद्धा को वर्णित किया। पखावज पर जगतनारायण शर्मा ने संगत दी।

जुगलबंदी से छेड़ा राग बैरागी भैरव
वायलिन जुगलबंदी की प्रस्तुति में नमूदार हुए सुप्रसिद्ध वायलिन वादक महेश मलिक एवं अमित मलिक। पिता-पुत्र की इस जोड़ी ने वायलिन की तारों पर राग बैरागी भैरव छेड़ा। सधे हुए हाथों से उस्ताद सलीम अल्लाहवाले की तबला संगत के साथ श्रोताओं को राग का अनुराग प्रदान कराया। इसमें विलंबित एक ताल में बड़ा खयाल की गत और द्रुत तीन ताल में छोटे खयाल की बंदिश से दीर्घा में राग की सुगंध घोली। अंत में राग चारुकेशी की धुन से प्रस्तुति को विराम दिया।

अंगुलियों की कारीगरी ने किया मंत्रमुग्ध
वायलिन की सुमधुर धुनों को सुनने के बाद अब गिटार की धुनों से साक्षात्कार का समय था। वाराणसी की सुप्रसिद्ध गिटार वादिका सुश्री कमला शंकर की तानसेन समारोह के मंच पर आमद हुई। शंकर गिटार वाद्ययंत्र पर उन्होंने राग शुद्ध सारंग छेड़ा। उंगलियों की कारीगरी और राग की जादूगरी ने कुछ इस तरह संगीतप्रेमियों की आत्मा पर दस्तक दी कि सब निहाल हो गए। उनके साथ तबले पर पंडित ललित कुमार ने संगत दी। सुश्री कमला पंडित ने अपनी प्रस्तुति को सुप्रसिद्ध तबला वादक एवं पद्मविभूषण उस्ताद जाकिर हुसैन को समर्पित किया।

“नाद वेद अपरंपार” बंदिश का गायन
गायन की सभा में युवा गायिका रतलाम की सुश्री भव्या सारस्वत ने अपने मधुर कंठ का परिचय दिया। उन्होंने प्रस्तुति के लिए राग हिंडोल का चयन किया। आपने चौताल में नाद वेद अपरम्पार…. बंदिश प्रस्तुत की। इसके बाद राग मुल्तानी सूलताल में बंदिश गाकर प्रस्तुति को विराम दिया। उनके साथ पखावज पर जयंत गायकवाड़ ने संगत की।
सुर बहार के माधुर्य में डूबे रसिक
अंतिम प्रस्तुति में संगीतप्रेमियों ने सुरबहार के माधुर्य का आनन्द प्राप्त किया। यह आनन्द प्रदान करने सुरबहार के सुप्रसिद्ध वादक अश्विन दलवी, जयपुर से पधारे। उन्होंने राग भीमपलासी का चयन करते हुए सुरबहार के तार छेड़े। मौजूदा समय में हमारे देश में इस विरल वाद्य के जो गिने-चुने कलाकार हैं, उनमें अश्विन दलवी प्रमुख हैं। सुरबहार में स्वर-कंपन संग वह माधुर्य की जैसे वृष्टि करते हैं। सुरबहार में उन्होंने नित-नए प्रयोग किए हैं।