न्याय की मुहर से ठगी! सुप्रीम कोर्ट ने ‘डिजिटल अरेस्ट’ घोटालों पर उठाया सख्त कदम — केंद्र और राज्यों को भेजा नोटिस

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न्याय की मुहर से ठगी! सुप्रीम कोर्ट ने ‘डिजिटल अरेस्ट’ घोटालों पर उठाया सख्त कदम — केंद्र और राज्यों को भेजा नोटिस

सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा कदम उठाते हुए तेजी से बढ़ रहे ‘डिजिटल अरेस्ट’ और साइबर फ्रॉड मामलों पर स्वतः संज्ञान लिया है। अदालत ने कहा कि यह केवल साइबर अपराध नहीं, बल्कि “न्यायपालिका के नाम और मुहर के दुरुपयोग” से जुड़ा अत्यंत गंभीर मामला है।

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाला बागची की पीठ ने इस पर सुनवाई करते हुए कहा — “यह सामान्य साइबर अपराध नहीं है। जब न्यायालय के नाम, आदेश और हस्ताक्षर का दुरुपयोग किया जाता है, तो यह जनता के न्याय पर विश्वास की नींव को हिला देता है।” इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार, हरियाणा सरकार, सीबीआई और अंबाला साइबर क्राइम विभाग को नोटिस जारी किया है।

क्या है ‘डिजिटल अरेस्ट’ फ्रॉड?

‘डिजिटल अरेस्ट’ फ्रॉड में साइबर ठग खुद को सीबीआई, आईबी या न्यायिक अधिकारी बताकर लोगों को धमकाते हैं। वे वीडियो कॉल या व्हाट्सएप के जरिए फर्जी अदालत के आदेश, मुहर और हस्ताक्षर दिखाते हैं और कहते हैं कि व्यक्ति किसी अपराध में शामिल है, इसलिए “अभी डिजिटल रूप से अरेस्ट” किया जा रहा है।फिर डराकर उनसे भारी रकम ट्रांसफर करवा ली जाती है।

वरिष्ठ नागरिक दंपति बने शिकार, ₹1.5 करोड़ की ठगी

यह मामला उस समय सामने आया जब अंबाला की एक वरिष्ठ नागरिक महिला ने शिकायत दर्ज कराई कि 1 से 16 सितंबर के बीच उन्हें “डिजिटल अरेस्ट स्कैम” का शिकार बनाया गया।

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शिकायत के अनुसार —

  • ठगों ने खुद को सीबीआई और न्यायिक अधिकारी बताकर व्हाट्सएप वीडियो कॉल की।
  • सुप्रीम कोर्ट के फर्जी आदेश और सील दिखाकर गिरफ्तारी की धमकी दी।
  • उन्हें कहा गया कि उनके खाते को मनी लॉन्ड्रिंग केस में फ्रीज़ किया गया है।
  • डर के माहौल में महिला और उनके पति ने अपनी जीवनभर की जमा पूंजी ₹1.5 करोड़ ट्रांसफर कर दी।

जांच में खुलासा हुआ कि जिन दस्तावेजों पर ईडी और जजों के हस्ताक्षर बताए गए थे, वे सभी जाली थे। यहाँ तक कि 1 सितंबर दिनांकित एक फर्जी फ्रीज़ ऑर्डर तैयार किया गया था जिसमें PMLA (मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट) का हवाला दिया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने क्यों लिया स्वतः संज्ञान

जब यह मामला मीडिया में सामने आया, तो जस्टिस सूर्यकांत ने इसे बेहद गंभीर मानते हुए मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई के संज्ञान में लाया। इसके बाद अदालत ने स्वतः संज्ञान लेकर पूरे मामले में राष्ट्रीय स्तर पर जांच का निर्देश दिया।

 अदालत ने कहा — “ऐसे अपराध केवल एक व्यक्ति को नहीं, बल्कि न्याय प्रणाली की साख को चोट पहुंचाते हैं। जनता के विश्वास की रक्षा के लिए कठोर कार्रवाई आवश्यक है।”

देशभर में बढ़ रहे ‘डिजिटल अरेस्ट’ स्कैम

हाल के महीनों में देश के कई राज्यों से ‘डिजिटल अरेस्ट’ के मामले सामने आए हैं, खासकर वरिष्ठ नागरिकों और महिलाओं को निशाना बनाते हुए। ठग वीडियो कॉल पर फर्जी पुलिस यूनिफॉर्म में आते हैं, ‘वर्चुअल कोर्ट’ दिखाते हैं और लोगों को डराकर रकम वसूलते हैं। साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों के अनुसार — “इन फ्रॉड में AI और डीपफेक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है, जिससे ठगों की पहचान और मुश्किल हो जाती है।”

सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि —

  • यह सिर्फ धोखाधड़ी नहीं बल्कि “न्यायपालिका की गरिमा पर हमला” है।
  • अदालत की मुहर, नाम और आदेश का फर्जी उपयोग करने वालों पर सख्त सजा होनी चाहिए।
  • केंद्र और राज्य सरकारों को ऐसे मामलों की संगठित राष्ट्रीय जांच प्रणाली बनाने के निर्देश दिए गए हैं।

जनता के लिए चेतावनी

सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकों से भी अपील की है कि —

  • किसी भी कॉल या वीडियो चैट पर CBI, कोर्ट या पुलिस के नाम से आए संदेश पर तुरंत विश्वास न करें।
  • किसी भी आदेश की प्रमाणिकता जांचने के लिए आधिकारिक वेबसाइट या स्थानीय पुलिस से संपर्क करें।
  • किसी अज्ञात व्यक्ति को OTP, बैंक डिटेल या पैसा ट्रांसफर न करें।

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट का यह स्वतः संज्ञान साइबर अपराधों के खिलाफ एक बड़ा कदम माना जा रहा है। यह संदेश साफ है — “जो न्याय के नाम पर ठगी करेगा, अब कानून उसके खिलाफ खुद खड़ा होगा।”

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