अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को बड़ा झटका लगा है। अमेरिकी समयानुसार आधी रात से देश में सरकारी शटडाउन लागू हो गया है। ट्रंप की पार्टी को सीनेट में अस्थायी फंडिंग बिल पास कराने के लिए 60 वोटों की ज़रूरत थी, लेकिन उन्हें सिर्फ 55 वोट ही मिल पाए। नतीजतन यह प्रस्ताव गिर गया और अब प्रशासन के पास जरूरी फंडिंग की कमी हो गई है। इसका सीधा असर संघीय कामकाज पर पड़ना तय है।
क्यों होता है शटडाउन?
अमेरिकी सरकार के अलग-अलग विभागों को चलाने के लिए हर साल भारी फंडिंग की ज़रूरत होती है। इसके लिए कांग्रेस से बजट या अस्थायी फंडिंग बिल पारित कराना अनिवार्य है। लेकिन जब राजनीतिक मतभेद या गतिरोध के चलते फंडिंग बिल पास नहीं हो पाता, तो सरकार कानूनी रूप से खर्च करने में असमर्थ हो जाती है। ऐसे में गैर-जरूरी विभागों और सेवाओं को बंद करना पड़ता है, जिसे ही शटडाउन कहा जाता है।
2018 के बाद फिर दोहराई गई स्थिति
सात साल बाद अमेरिका इस स्थिति से गुजर रहा है। इससे पहले ट्रंप के ही कार्यकाल के दौरान 2018 में शटडाउन 34 दिनों तक चला था, जिसने प्रशासन को भारी नुकसान पहुँचाया था। इस बार भी खतरा गंभीर माना जा रहा है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि ट्रंप इस संकट का फायदा उठाते हुए लाखों कर्मचारियों की छंटनी और कई योजनाओं को रोकने का कदम उठा सकते हैं। शटडाउन से पहले ही ट्रंप ने ऐसे संकेत भी दे दिए थे।
शटडाउन के असर
- नया वित्त वर्ष 1 अक्तूबर से लागू होते ही शटडाउन शुरू हो गया।
- करीब 40% फेडरल कर्मचारी (लगभग 8 लाख) बिना वेतन अनिवार्य छुट्टी पर भेजे जा सकते हैं।
- हेल्थ और ह्यूमन सर्विस विभाग ने 41% स्टाफ को छुट्टी पर भेजने की तैयारी की है।
- नेशनल पार्क, म्यूजियम और कई सरकारी वेबसाइटें बंद हो सकती हैं।
- कानून व्यवस्था, सीमा सुरक्षा, मेडिकल और हवाई सेवाओं जैसी जरूरी सेवाएं जारी रहेंगी।
- ट्रांसपोर्ट सेवाओं पर असर पड़ सकता है, उड़ानों में देरी संभावित है।
- यदि शटडाउन लंबा खिंचता है तो इसका असर बाजारों और अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर भी गहराई से दिखेगा।
बड़ी चुनौती ट्रंप के सामने
ट्रंप प्रशासन के सामने अब बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है। एक तरफ कर्मचारियों का भविष्य दांव पर है तो दूसरी तरफ देश की अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ सकता है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि यदि राजनीतिक सहमति जल्द नहीं बनी तो इसका असर वैश्विक बाज़ारों पर भी दिखेगा।