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आत्मा में बसी होना चाहिए संस्कृति और विरासत: सिंधिया

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— केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य ने संगीत विश्वविद्यालय में किया विद्यार्थियों के साथ संवाद
— विश्वविद्यालय और संगीत के विकास के लिए हर संभव सहयोग का दिलाया भरोसा

ग्वालियर। राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय ग्वालियर की समृद्ध सांगीतिक विरासत को सहेजने का काम कर रहा है। इसलिए संस्थान के विकास में हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि विश्वविद्यालय का बाहरी स्वरूप भले ही अति आधुनिक बने, पर इसकी आत्मा अर्थात भीतरी स्वरूप में हमारी ऐतिहासिक सांस्कृतिक व आध्यात्मिक विरासत दिखना चाहिए।
केंद्रीय संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सोमवार को राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय में आयोजित “विद्यार्थी सह संवाद कार्यक्रम को संबोधित करते हुए यह बात कही। कायर्क्रम की अध्यक्षता कुलगुरु प्रोफेसर स्मिता सहस्त्रबुद्धे ने की। जबकि प्रदेश के ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर विशिष्ट अतिथि थे। संचालन पारुल दीक्षित ने किया।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बनाएं पहचान
केंद्रीय मंत्री सिंधिया ने विद्यार्थियों शास्त्रीय गायन एवं नृत्य से अभीभूत होते हुए कहा कि हमें भरोसा है कि विश्व के बड़े-बड़े संगीतकार व कलाकार इस विश्वविद्यालय से निकलेंगे। यूनेस्को ने भी ग्वालियर को संगीत की नगरी मान लिया है। इसलिए यह तय है कि आने वाले समय में सर्वश्रेष्ठ संगीतज्ञ यहां की मिट्टी से निकलकर विश्व में नाम करेंगे। प्रतिभाओं को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में उनकी हर संभव मदद की जाएगी। उन्होंने विश्वविद्यालय की कुलगुरु स्मिता सहस्त्रबुद्धे से कहा कि वे विश्वविद्यालय की अधोसंरचनागत आवश्यकताओं का एक चार्टर बनाकर हमें उपलब्ध कराएँ। केन्द्र व राज्य सरकार के माध्यम से विश्वविद्यालय की सभी मांगें पूरी कराई जायेंगीं।

संगीत को बढ़ावा देगा सिंधिया परिवार
सिंधिया ने कहा कि जिस तरह आग में तपकर तलवार मजबूत होती है, उसी तरह गायन, नृत्य व ललित कलाओं में पारंगत होने के लिये कड़ी साधना करनी होती है। मंच पर महज चंद मिनटों की प्रस्तुति के लिए कई दिन, कई रात और यहाँ तक कई साल लगातार तपस्या करनी होती है। शास्त्रीय संगीत की परंपरा कई हजार साल पुरानी है। गायन, वादन, नृत्य स्वयं में एक भाषा है। इसे समझने के लिए कलाकार के साथ दर्शक को भी इसका अभ्यास करना होगा। राजा मानसिंह तोमर ने संगीत व कलाओं को जो आश्रय दिया था, उसे सिंधिया परिवार ने भी पूरी शिद्दत के साथ संरक्षित कर आगे बढ़ाया है और सदैव उसे बढ़ावा देगा सिंधिया परिवार।

विश्वविद्यालय का बढ़े दायरा: तोमर
विशिष्ट अतिथि तोमर ने कहा कि विश्वविद्यालय का दायरा बढ़ाने के प्रयास होना चाहिए। विश्वविद्यालय का दायरा पूरा भारत वर्ष होना चाहिए। उन्होंने केंद्रीय मंत्री सिंधिया से आग्रह करते हुए कहा कि इस संबंध में केन्द्रीय संस्कृति मंत्री से चर्चा करें। इससे विश्वविद्यालय का विकास होगा। साथ ही इसका लाभ पूरे देश को मिल सकेगा।

ग्वालियर की संगीत परपंरा सदियों पुरानी
कुलगुरू सहस्त्रबुद्धे ने कहा कि ग्वालियर की संगीत परंपरा काफी पुरानी है। जिस तरह राजा मानसिंह तोमर ने गायन की ध्रपद और धमार शैली को विकसित किया। उसी तरह से सिंधिया परिवार का इस संगीत परंपरा को आगे बढ़ाने में खास योगदान रहा है। महाराज दौलतराव सिंधिया ने विश्व प्रसिद्ध ख्याल गायकी को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे स्वयं लखनऊ गए और वहां से हस्सू हद्दू खां जैसे कलाकारों को ग्वालियर लेकर आए और गायन शैली को सिखाने के लिए ‘अन्न छत्र’ की स्थापना की। जिसमें स्थानीय कलाकारों को निःशुल्क सिखाया जाता था। इसे सीखने के लिए भारत रत्न पं. भीमसेन जोशी जैसे कलाकार भी ग्वालियर आए थे।
उन्होंने कहा कि सिंधिया राजवंश द्वारा इंतजामिया कमेटी का गठन हुआ, जिसके माध्यम तानसेन उर्स के आयोजन की शुरूआत हुई। कुलगुरु ने विश्वविद्यालय के विकास के लिए सिंधिया से आग्रह किया। उन्होंने विश्वविद्यालय में आधुनिक तकनीक से सुसज्ज्ति ऑडिटोरियम, आधुनिक स्टूडियो, छात्र- छात्राओं के रहने के लिए छात्रावास और मुख्य द्वार के सामने आरओबी के नीचे वाले स्थान को विश्वविद्यालय को देने की मांग की।

प्रदर्शनी देख खुश हुए सिंधिया
सिंधिया ने ललित कला विभाग की प्रदशर्नी का भी अवलोकन किया। कायर्क्रम के दौरान फाइन आर्ट विभाग के विद्यार्थियों द्वारा उन्हें कलाकृतियां भी भेंट की गईं।
ख्याल सुन अभीभूत हुए सिंधिया शोध छात्र अखिलेश अहिरवार ने राग भीम पलासी में सुमधुर ख्याल गायन की अद्भुत प्रस्तुति दी जिसे सुन सिंधिया अभीभूत हो गए। उन्होंने श्री अखिलेश से फरमाइश कर इसी राग में एक भजन सुनाने को कहा। अखिलेश अहिरवार ने राग भीमपलासी, तीन ताल में “जानू रे तुम्हरो मन श्यामचंद्र ..” की प्रस्तुति देकर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। सिंधिया की फरमाइश पर उन्होंने राग भीमपलासी में ही “मिल जाना राम प्यारे.” की मधुरम प्रस्तुति देकर फिजा में सुरों की रंगत बिखेर दी। कथक और भरतनाट्यम का फ्यूजन
नृत्य और गायन संगम में सरस्वती वंदना, मध्यप्रदेश गान और विश्वविद्यालय के कुलगीत की प्रस्तुति हुई। फिर कथक और भरतनाट्यम् नृत्य के फ्यूजन का अद्भुत प्रस्तुतिकरण देखने को मिला। जिसमें राम स्तुति एवं चरिष्णु को रागमाला और तालमाला में प्रस्तुत कर हिंदुस्तानी और कनार्टक संगीत के साथ शानदार रूप में प्रस्तुत किया गया वंदेमातरम के साथ इसका समापन हुआ। केन्द्रीय मंत्री शास्त्रीय गायन एवं भरत नाट्य्म पर कथक की जुगलबंदी करने वाले सभी कलाकारों से व्यक्तिगत भेंट कर उनकी प्रतिभा को सराहा और सभी को शाबाशी दी।
ये रहे मौजूद
कार्यक्रम में मुन्नालाल गोयल, विद्या परिषद के सदस्यगण अशोक आनंद, साधारण परिषद के सदस्य चंद्रप्रताप सिकरवार व पूर्व ईसी मेंबर अतुल अधोलिया के अलावा कुलसचिव प्रो. राकेश कुशवाह, वित्त नियंत्रक डॉ. आशुतोष खर, डॉ. अंजना झा, डॉ. मनीष करवड़े, डॉ. संजय सिंह, डॉ. एसके मैथ्यू, डॉ. गौरीप्रिया, डॉ. श्याम रस्तोगी एवं डॉ. हिमांशु द्विवेदी प्रमुख से मौजूद रहे।
PostedBy :विजय पाण्डेय

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