*— राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी दिवस*
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_आतंकवाद आज के युग की सबसे गंभीर समस्याओं में से एक है। यह देश की आंतरिक सुरक्षा को खतरे में डालता है, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्थिरता को भी छिन्न-भिन्न कर देता है। आतंकवाद का स्वरूप समय के साथ बदला है। पहले जहाँ यह सीमित क्षेत्रों में सक्रिय था, अब यह तकनीक और सोशल मीडिया की मदद से वैश्विक स्तर पर फैल चुका है। भारत जैसे विशाल और विविधताओं से भरपूर देश के लिए आतंकवाद एक स्थायी चुनौती बन चुका है। ऐसे में इसके कई दुष्परिणाम देखने को मिल रहे हैं। राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी दिवस पर जानते हैं देश में हुई आतंकी घटनाओं का इतिहास उसका दुष्परिणाम और सरकार की रणनीति ……_
*डॉ.केशव पाण्डेय*
—- आज राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी दिवस है। 21 मई को हर वर्ष यह दिवस मनाया जाता है। यह दिवस न केवल हमें आतंकवाद की भयावहता की याद दिलाता है, बल्कि यह भी बताता है कि एकजुट होकर ही हम इस वैश्विक संकट का सामना कर सकते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पुण्यतिथि के रूप में इसे मनाया जाता है, जिनकी 1991 में एक आत्मघाती हमले में हत्या कर दी गई थी। ये घटना न केवल मानवता पर हमला थीं, बल्कि देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए भी एक चेतावनी थी।
ऐसे में इस दिन का मुख्य उद्देश्य आतंकवाद के खिलाफ जनजागरूकता फैलाना, युवाओं को इसके विनाशकारी प्रभावों से अवगत कराना और समाज में शांति, सहिष्णुता तथा राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देना है। देश के सभी वर्गों में आतंकवाद और हिंसा के खतरे तथा लोगों, समाज और पूरे देश पर इसके प्रभाव के बारे में जागरूकता पैदा करना भी है।
पहले बात करते हैं आखिर क्या है आतंकवाद? आतंकवाद को अक्सर “टेररिज्म“ के नाम से भी जाना जाता है। यह शब्द “टेरर“ से लिया गया है, जिसका अर्थ है डर या भय। आतंकवादी घटननाओं को अंजाम देकर और निर्दोष लोगों की जान लेकर भय का माहौल पैदा करते हैं। ये घटनाएं न केवल जीवन छीनती हैं, बल्कि लोगों में भय, असुरक्षा और मानसिक तनाव का वातावरण बना देती हैं। आतंकवाद के कारण देश की अर्थव्यवस्था पर भारी प्रभाव पड़ता है। उद्योग, पर्यटन और निवेश जैसे क्षेत्रों को गंभीर क्षति होती है। जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर राज्यों में निवेशकों का अभाव इसका उदाहरण है।
सामाजिक विघटन पैदा होता है, क्योंकि आतंकवादी ताकतें अक्सर जाति, धर्म, भाषा और क्षेत्र के आधार पर लोगों को बांटने का प्रयास करती हैं। इससे सामाजिक सौहार्द बिगड़ता है और नफरत का माहौल बनता है। आतंकवाद प्रभावित देशों की छवि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नकारात्मक होती है, जिससे विदेशी सहयोग, निवेश और पर्यटन प्रभावित होते हैं।
ह दिवस लोगों में जागरूकता पैदा करता है, ताकि युवाओं को उग्रवाद, कट्टरवाद और सांप्रदायिकता से दूर रखा जा सके। राष्ट्रीय एकता, अखंडता और भाईचारे की भावना को बढ़ावा मिल सके। हिंसा के बजाय शांति और संवाद को अपनाने की प्रेरणा दी जा सके।
भारत ने आतंकवाद को समाप्त करने के लिए कई स्तरों पर ठोस कदम उठाए हैं। सरकार की रणनीति बहुआयामी है, जिसमें कूटनीतिक, सैन्य, कानूनी और सामाजिक उपाय शामिल हैं।
जिनमें प्रमुख तौर पर कानूनी प्रावधान के तहत आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्त व्यक्तियों और संगठनों पर कार्रवाई प्रमुख है। 2008 में मुंबई हमले के बाद एएनआई का गठन किया गया। जो आतंकवाद से संबंधित मामलों की जांच करती है। सर्जिकल स्ट्राइक, बालाकोट एयर स्ट्राइक और ऑपरेशन सिंदूर जैसे सैन्य अभियान भारत की बदलती रणनीति का परिचायक हैं।
जिसमें अब “रक्षात्मक“ के बजाय “प्रतिकारात्मक“ नीति अपनाई जाती है। सीमाओं पर सुरक्षा बलों की तैनाती, स्मार्ट फेंसिंग, और ड्रोन निगरानी जैसे आधुनिक उपाय किए जा रहे हैं। भारत अपनी कूटनीति से आतंकवाद को प्रायोजित करने वाले देशों को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बेनकाब करता रहा है।
संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर भारत ने आतंकवादी संगठनों को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने की मांग की है। भारत सरकार ने आंतरिक सुरक्षा को मजबूत करने के लिए साइबर सुरक्षा, गुप्तचर नेटवर्क, और संवेदनशील क्षेत्रों में विकास परियोजनाओं पर जोर दिया है। राज्य सरकारों के साथ तालमेल बढ़ाकर स्थानीय स्तर पर आतंकवाद रोधी तंत्र को भी मजबूत किया गया है।
देश की प्रमुख आतंकी घटनाओं का जिक्र करे तों पाते हैं कि 31 अक्टूबर 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके सिख अंगरक्षकों ने हत्या की। इसके बाद 1985 में प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए एसपीजी का गठन किया गया।
1989 में जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद शुरू हुआ, जिसमें हजारों नागरिक, सुरक्षाकर्मी और कश्मीरी पंडितों को निशाना बनाया गया।
12 मार्च 1993 को मुंबई में 12 जगहों पर हुए बम धमाकों में 250 लोग मारे गए और 700 घायल हुए। दाऊद इब्राहिम के खिलाफ इंटरपोल रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया गया।
13 दिसंबर 2001 को भारतीय संसद पर हमला किया। सभी आतंकी मारे गए, लेकिन 9 सुरक्षाकर्मी भी शहीद हुए।
2002 में गुजरात के अक्षरधाम मंदिर में हुए आतंकी हमले में 30 से लोग मारे गए।
2005 और 2008 में दिल्ली के व्यस्त इलाकों में बम धमाके हुए।
11 जुलाई 2006 को मुंबई की लोकल ट्रेनों में सिलसिलेवार 7 बम धमाकों में 200 लोग मारे गए।
26 नवंबर 2008 को पाकिस्तान के 10 आतंकियों ने मुंबई में ताज होटल, ओबेरॉय होटल, सीएसटी स्टेशन पर हमला किया, जिसमें 166 लोग मारे गए।
10 जुलाई 2017 को अमरनाथ यात्रियों की बस पर आतंकियों ने हमला किया, जिसमें 7 श्रद्धालु मारे गए।
14 फरवरी 2019 को जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में आत्मघाती हमले में सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हुए।
22 अपै्रल 2025 को पहलगाम की बाईसरन घाटी में पांच आतंकियों ने 24 पर्यटकों की हत्या कर दी। इस हमले की जिम्मेदारी “द रेजिस्टेंस फ्रंट“ ने ली, जो पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का सहयोगी माना जाता है ।
इस घटना के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सेना को “पूर्ण स्वतंत्रता“ दी कि वह हमले का उचित जवाब दे। इसके तहत “ऑपरेशन सिंदूर“ नामक सैन्य अभियान चलाया गया, जिसमें भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान और पाक-अधिकृत कश्मीर में 9 आतंकी ठिकानों पर मिसाइल हमले किए। देशभर में 244 जिलों में नागरिक सुरक्षा अभ्यास किए गए, जिसमें हवाई हमले के सायरन, ब्लैकआउट और आपातकालीन प्रतिक्रिया की तैयारी की गई ।
भारत ने आतंकवाद की विभीषिका को बार-बार झेला है, लेकिन हर बार उससे उबरकर और भी सशक्त हुआ है। इन घटनाओं के बाद सरकार ने न केवल आतंकवादियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की, बल्कि कानून, खुफिया तंत्र, सुरक्षा बलों और कूटनीति को भी मजबूती दी है।
पहलगाम आतंकी हमला भारत के लिए अस्मिता पर गहरी चोट थी, जिसने न केवल निर्दोष नागरिकों की जान ली, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता को भी खतरे में डाला। भारत की कड़ी प्रतिक्रिया और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चिंता इस बात का संकेत है कि आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक एकजुटता आवश्यक है।
7 मई 2025 को भारत के सैन्य हमलों के बाद, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की कथित मध्यस्थता से 10 मई को भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्षविराम की घोषणा की गई ।
हालांकि संघर्षविराम लागू है बावजूद इसके सीमा पर तनाव और अविश्वास की स्थिति है। ऐसे में दोनों देशों के लिए आवश्यक है कि वे संवाद और सहयोग के माध्यम से स्थायी समाधान की दिशा में कदम बढ़ाएँ।
आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई केवल सरकार की नहीं, बल्कि हर नागरिक की है। जब तक समाज सजग और एकजुट नहीं होगा, आतंकवादी ताकतों को पूरी तरह समाप्त करना संभव नहीं है। हर व्यक्ति को यह समझना चाहिए कि धर्म, जाति या विचारधारा के नाम पर हिंसा का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। युवाओं को कट्टरता से बचाना अत्यंत आवश्यक है। इसके लिए शिक्षा, संवाद और सही दिशा-निर्देशन अहम भूमिका निभाते हैं। सांप्रदायिक सौहार्द और भाईचारा आतंकवाद के खिलाफ सबसे मजबूत हथियार हैं। सोशल मीडिया पर अफवाहों और कट्टर विचारों से सावधान रहना और उन्हें रिपोर्ट करना भी समाज की जिम्मेदारी है।
राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी दिवस केवल एक औपचारिकता नहीं, बल्कि यह एक चेतावनी और संकल्प का दिन है। यह हमें याद दिलाता है कि शांति, सद्भाव और एकता ही किसी राष्ट्र की असली ताकत होती है। राष्ट्र की अखंडता, स्वतंत्रता और समृद्धि की रक्षा के लिए आतंकवाद के विरुद्ध यह संघर्ष निरंतर और दृढ़ संकल्प के साथ जारी रहना चाहिए। आतंकवाद चाहे किसी भी रूप में हो, वह मानवता के लिए अभिशाप है।
*(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)*