ग्वालियर में पोषण पखवाड़ा के अंतर्गत महिला किसानों को जागरूक किया गया
ग्वालियर जिले के डबरा विकासखंड के ग्राम जौरासी में राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा पोषण पखवाड़ा 2025 के अंतर्गत महिला कृषकों और किशोरी बालिकाओं के लिए एक विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया।
इस प्रशिक्षण में 44 महिला कृषकों और किशोरी बालिकाओं ने भाग लिया।
वरिष्ठ वैज्ञानिकों ने दिए पोषण सुरक्षा के अहम टिप्स
इस प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. शैलेन्द्र सिंह कुशवाह के मार्गदर्शन में किया गया।
कार्यक्रम में वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. रीता मिश्रा और वरिष्ठ तकनीकी अधिकारी डॉ. एस.सी. श्रीवास्तव विशेष रूप से उपस्थित रहे।
डॉ. रीता मिश्रा ने बताया:
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पोषण वाटिका के माध्यम से खाद्यान्न और पोषण सुरक्षा प्राप्त की जा सकती है।
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स्थानीय पौष्टिक खाद्य पदार्थों का उपयोग कर खाद्य विविधता लाई जा सकती है।
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फलों, सब्जियों और अनाजों के प्रसंस्करण एवं मूल्य संवर्धन की विधियों से पोषण स्तर बढ़ाया जा सकता है।
पोषण रंगोली और जागरूकता अभियान
महिलाओं को पोषण के प्रति और अधिक जागरूक करने के लिए पोषण रंगोली का आयोजन भी किया गया। इसमें सभी पौष्टिक खाद्य सामग्री को उनके पोषण तत्वों के अनुसार दर्शाया गया। यह पहल महिलाओं के लिए दृश्यात्मक सीखने का एक कारगर माध्यम साबित हुई।
प्राकृतिक खेती पर भी मिला मार्गदर्शन
डॉ. एससी श्रीवास्तव ने प्रशिक्षणार्थियों को प्राकृतिक खेती से जुड़ी तकनीकों की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि पोषण वाटिका में जीवामृत, नीमास्त्र, अग्निस्त्र जैसे प्राकृतिक उत्पादों का उपयोग कैसे किया जाए।
इन जैविक विधियों से उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ स्वास्थ्यवर्धक फसलें भी प्राप्त की जा सकती हैं।
कार्यक्रम में संस्थाओं का सक्रिय योगदान
कार्यक्रम में ब्रिटेनिया न्यूट्रिशन फाउंडेशन के योगेश कुशवाहा, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता शांति यादव और सहायिका सुमन विश्वकर्मा का सराहनीय योगदान रहा।
इन सभी ने महिलाओं को पोषण और स्वास्थ्य से जुड़ी विभिन्न गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रेरित किया।
निष्कर्ष
पोषण पखवाड़ा 2025 के तहत आयोजित यह प्रशिक्षण न केवल महिला कृषकों को स्वस्थ जीवनशैली और पोषण सुरक्षा की ओर प्रेरित कर रहा है, बल्कि स्थानीय संसाधनों के बेहतर उपयोग की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम है।
ऐसे आयोजनों से महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने और अपने परिवार व समुदाय की पोषण आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद मिलती है।