मानव जीवन में जाने-अनजानें अनेक पाप हो जाते हैं यदि आप इन पापों से मुक्ति चाहते हो तो फिर खास है यह एकादशी व्रत। जानिए इसका शुभ मुहूर्त, महत्व और पूजा की सही विधि।
डॉ. केशव पाण्डेय
— सावन और पुरुषोत्तम मास का महीना चल रहा है। दान-धर्म के लिए यह महीना महत्वपूर्ण माना जाता है। सावन मास में ही पद्मिनी एकादशी के व्रत का सुखद संयोग बन रहा है। इसे समुद्रा एकादशी के नाम भी जाना जाता हैं। अधिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पद्मिनी एकादशी कहते हैं। हिंदू पंचाग के अनुसार इस बार 29 जुलाई शनिवार को मनाई जाएगी। सनातन धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। इसका पालन करने से यज्ञ, व्रत और तपस्या का फल मिलता है। जीवन का बड़े से बड़ा संकट टल जाता है। मलमास का महीना जगत के पालन हार भगवान विष्णु को बेहद प्रिय है। इस माह में श्रीहरि की पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है। एकादशी का व्रत भी श्रीहरि को ही समर्पित है। ऐसे में तीन साल में एक बार पड़ने वाली पद्मिनी एकादशी का महत्व और भी बढ़ जाता है।

पद्मिनी एकादशी इसलिए महत्वपूर्ण मानी गई है क्योंकि यह सिर्फ अधिक मास में ही आती है और अधिक मास हर तीन साल में आता है। इस दिन चराचर के संचालक भगवान विष्णु और धन की अधिष्ठात्री मॉं लक्ष्मी की विधि विधान से पूजा की जाती है। धर्म शास्त्रों में निहित है कि एकादशी व्रत करने से साधक को गौदान के समतुल्य फल प्राप्त होता है। साथ ही घर में सुख, समृद्धि, शांति और खुशहाली आती है। पद्मिनी एकादशी का व्रत करने से साधक को सुख-समृद्धि और संतान की प्राप्ति होती है।
माना जाता है कि साल भर एकादशी का व्रत करने से जितना पुण्य प्राप्त होता है उतना इस एकादशी के करने से मिल जाता है। इतना ही नहीं इस एकादशी के व्रत से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। ऐसे में इसका महत्व बढ़ जाता है। पद्मिनी एकादशी व्रत करने से संतान की प्राप्ति होती है और व्यक्ति को बैकुंठ प्राप्त होता है।
पद्मिनी एकादशी की कहानी
पौराणिक कथा के अनुसार त्रेता युग में महिष्मती पुरी नामक राज में कृतवीर्य नामक प्रतापी राजा राज करते थे। नरेश कृतवीर्य महान योद्धा थे। उन्होंने आसपास के क्षेत्रों के राजाओं को परास्त कर अपने साम्राज्य का विस्तार किया था। इस वजह से उनकी एक से अधिक भार्या थीं। लेकिन सभी निःसंतान थीं। संतान प्राप्ति के लिए राजा कृतवीर्य ने देवी-देवताओं की पूजा-उपासना की। वैद्य और चिकित्सक से भी सलाह ली। बावजूद इसके संतान की प्राप्ति नहीं हुई। ये सोच नरेश कृतवीर्य ने कठोर तपस्या करने का निश्चय किया। अपनपे मंत्री को कार्यभार सौंप वर्षों तक गंधमादन पर्वत पर राजा कृतवीर्य ने तपस्या की। इससे भी उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति नहीं हुई। उस समय पतिव्रता रानी पद्मिनी से अनसूया ने मलमास महीने में पड़ने वाली सावन मास की एकादशी व्रत करने की सलाह दी। अनसूया के वचनानुसार, महारानी पद्मिनी ने पुत्र प्राप्ति हेतु पुरुषोत्तम मास में पड़ने वाली एकादशी का व्रत रख विधि विधान से भगवान विष्णु की उपासना कर रात्रि जागरण भी किया। महारानी पद्मिनी की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया। इस व्रत के पुण्य प्रताप से महारानी पद्मिनी को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। धार्मिक मान्यता है कि कृतवीर्य का पुत्र कार्तवीर्य तीनों लोकों में सबसे शक्तिशाली था। उन्हें भगवान को छोड़ कोई युद्ध के मैदान में परास्त नहीं कर सकता था। लंका नरेश रावण को कार्तवीर्य ने चुटकी में हरा दिया था। वर्तमान समय तक पृथ्वी लोक पर कार्तवीर्य की शक्ति के समतुल्य कोई पैदा नहीं हुआ है।
पूजा विधि और शुभ मुहूर्त
पद्मिनी एकादशी का आगमन शुक्रवार को ही हो गया यह शनिवार को दोपहर 1 बजकर 6 मिनट तक रहेगी। उदया तिथि 29 जुलाई होने के कारण इसे शनिवार को ही मनाया जाना श्रेष्ठ है। वैदिक पंचांग के अनुसार एकादशी पर अत्यंत शुभ योग
ब्रह्म और इंद्र योग का संयोग बन रहा है। सुबह 9 बजकर 34 मिनट पर ब्रह्म और उसके बाद इंद्र योग रहेगा। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार के इन दोनों योगों में स्नान-दान एवं पूजा-पाठ करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं और देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है।