मतदान केंद्रो पर फर्जी मतदान करवाना, मतदाताओं को मत का प्रयोग नहीं करने देना, उनके साथ मारपीट कर भय का वातावरण बनाना, क्या यह दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में शोभा देता है?
— आनंद त्रिवेदी
प्रशासन चुनाव में निष्पक्ष एवं शांतिपूर्ण मतदान कराने का दंभ भरता रहा। ऐसा नहीं कि प्रशासन इस बात से बेखबर हो कि संवेदनशील स्थानों पर शांतिभंग न हो! बावजूद इसके सुरक्षा व्यवस्था को कड़ी रखना दूर की बात हो जाना, प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान है? क्योंकि अनेक ऐसे संवेदनशील बूथ थे, जिन पर सुरक्षा बल ना के बराबर होने से मतदाताओं के साथ दबंगों ने मारपीट की, पत्थरबाजी के साथ ही हवाई फायरिंग जैसी घटनाएं घटित हुईं। प्रशासन ने दबाव में कई स्थानां पर एफआईआर तक नहीं लिखी, लिखी भी तो सत्यता से परे कमजोर धाराओं में! दुर्भाग्य है! क्या यही लोकतंत्र है?
सबसे ज्यादा दुःख तो तब होता है जब कुछेक आईएएस, आईपीएस जैसे पदों पर बैठे व्यक्ति सत्ता के एजेंट के रूप में काम करते हैं, वहीं अधीनस्थ भी इनका अनुसरण कर कार्य करते हैं तब कैसा होगा हमारे राष्ट्र का मजबूत लोकतंत्र?
चंबल अंचल में आजादी से लेकर आज तक एक भी चुनाव बिना हिंसा के संपन्न नहीं हो सका, जबकि चुनाव प्रक्रिया में लोकल बलतंत्र के अलावा बीएसएफ सहित देश की प्रमुख सुरक्षा एजेंसियां कार्य करती हैं।
सबसे ज्यादा हिंसा उन क्षेत्रों में ज्यादा होती हैं, जहां बाहुबली एवं आपराधिक प्रवृत्ति के लोग चुनाव में भाग लेकर साम, दाम, दंड, भेद अपनाकर जीत हासिल कर सत्ता के हिस्सेदार बनते हैं ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि इन हालातों में कैसे मजबूत होगा लोकतंत्र?
नेतागण अपने स्वार्थ के चलते आपस में इतना वैमनस्य पैदा करवा देते हैं कि चुनाव के बाद भी वर्षों तक हिंसा के रूप में परिणाम देखने को मिलते हैं। जातिवाद, भाषाबाद, धर्मवाद और क्षेत्रवाद को हथियार के रूप में प्रयोग कर भोली वाली जनता को आज तक बेवकूफ बनाते आ रहे है और जनता भी बनती आ रही है। इसी कारण बुद्धिजीवी वर्ग चुनाव में रुचि नहीं ले रहा है मौजूदा सरकारों को इस पर गंभीरता से ध्यान देना होगा तभी मजबूत होगा हमारे राष्ट्र का लोकतंत्र!