पूर्णिमा पर करें यह पाठ, हो जाएंग जीवन में ठाठ,खास दिन पर कुछ उपाय करने से होगा जीवन में खुशियों का संचार
हिंदू धर्म में प्रत्येक पूर्णिमा का महत्व है। चैत्र पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा अपनी सभी कलाओं से परिपूर्ण रहता है। इसलिए चैत्र पूर्णिमा के दिन चंद्र देव की पूजा करने का विधान है। साथ ही भगवान विष्णु और धन की देवी मांँ लक्ष्मी की भी उपासना की जाती है। माना जाता है कि ऐसा करने से साधक के जीवन में खुशियों का आगमन होता है और शुभ फल की प्राप्ति होती है।
धर्म-कर्म विशेष। हिंदू धर्म में चैत्र पूर्णिमा का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु और मांँ लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए उपवास रखा जाता है। साथ ही विधिपूर्वक पूजा की जाती है। माना जाता है कि ऐसा करने से साधक के जीवन में खुशियों का आगमन होता है और शुभ फल की प्राप्ति होती है।
पंडित सुनीत दत्त शुक्ला के मुताबिक चैत्र पूर्णिमा के दिन पूजा के दौरान श्री हरि स्तोत्र का पाठ करना बेहद कल्याणकारी माना जाता है। मान्यता है कि इस स्तोत्र का पाठ करने से साधक को भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है। प्रभु प्रसन्न होते हैं और जीवन में ठाठ होने लगते हैं।
श्री हरि स्तोत्र का पाठ
जगज्जालपालं चलत्कण्ठमालं शरच्चन्द्रभालं महादैत्यकालं नभोनीलकायं दुरावारमायं सुपद्मासहायम् भजेऽहं भजेऽहं ॥
सदाम्भोधिवासं गलत्पुष्पहासं जगत्सन्निवासं शतादित्यभासं गदाचक्रशस्त्रं लसत्पीतवस्त्रं हसच्चारुवक्त्रं भजेऽहं भजेऽहं ॥
रमाकण्ठहारं श्रुतिव्रातसारं जलान्तर्विहारं धराभारहारं चिदानन्दरूपं मनोज्ञस्वरूपं ध्रुतानेकरूपं भजेऽहं भजेऽहं ॥
जराजन्महीनं परानन्दपीनं समाधानलीनं सदैवानवीनं जगज्जन्महेतुं सुरानीककेतुं त्रिलोकैकसेतुं भजेऽहं भजेऽहं ॥
कृताम्नायगानं खगाधीशयानं विमुक्तेर्निदानं हरारातिमानं स्वभक्तानुकूलं जगद्व्रुक्षमूलं निरस्तार्तशूलं भजेऽहं भजेऽहं ॥
समस्तामरेशं द्विरेफाभकेशं जगद्विम्बलेशं ह््रुदाकाशदेशं सदा दिव्यदेहं विमुक्ताखिलेहं सुवैकुण्ठगेहं भजेऽहं भजेऽहं ॥
सुरालिबलिष्ठं त्रिलोकीवरिष्ठं गुरूणां गरिष्ठं स्वरूपैकनिष्ठं
सदा युद्धधीरं महावीरवीरं महाम्भोधितीरं भजेऽहं भजेऽहं ॥
रमावामभागं तलानग्रनागं कृताधीनयागं गतारागरागं
मुनीन्द्रैः सुगीतं सुरैः संपरीतं गुणौधैरतीतं भजेऽहं भजेऽहं ॥
फलश्रुति इदं यस्तु नित्यं समाधाय चित्तं पठेदष्टकं कण्ठहारम् मुरारेः स विष्णोर्विशोकं ध्रुवं याति लोकं जराजन्मशोकं पुनर्विन्दते नो ॥