महापौर, विधायक एवं सभापति ने किया दिव्यांग सहायता शिविर का शुभारंभ, पार्थिक शिवलिंग का निर्माण कर की शहर की खुशहाली की कामना
ग्वालियर । दिव्यांगों की सेवा करना ही सच्ची मानवीय सेवा है। दिव्यांग दर्शन परमात्मा के दर्शन के समान है। दिव्यांग इस धरती पर परमात्मा का ही रूप हैं। वह भी समाज में सम्मान के साथ जीवन जीने के हकदार हैं। धर्म और स्वास्थ्य के इस संगम में नर और नारायण सेवा की अनुकरणीय पहल देखने को मिली है, जो लोगों को सेवा के लिए प्रेरित करेगी।
महापौर डॉ. शोभा सिकरवार ने यह बात श्रद्धेय गुरुवाणी सेवा ट्रस्ट एवं लॉयंस क्लब ऑफ ग्वालियर के संयुक्त तत्वावधान में फूलबाग मैदान में आयोजित की जा रही नौ दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा और निःशुल्क स्वास्थ्य मेले में दिव्यांग सहायता शिविर का शुभारंभ करते हुए कही।
महापौर के साथ ही विधायक डॉ. सतीश सिंह सिकरवार, नगर निगम के सभापति मनोज सिंह तोमर, प्रमुख मार्गदर्शक एवं समन्वयक डॉ.केशव पाण्डेय, कांग्रेस जिलाध्यक्ष डॉ. देवेंद्र शर्मा एवं प्रदेश प्रवक्ता राम पाण्डेय ने वैदिक मंत्रोच्चार के साथ पूजा अर्चना कर विधिवत दिव्यांग सहायतार्थ कृत्रिम अंग निर्माण शिविर का शुभारंभ किया। इस दौरान जयपुर से आए भगवान महावीर विकलांग सहायता समिति के विशेषज्ञ भंवर सिंह राजावत, समर्थ लाल मीणा व जयराम वर्मा ने कृत्रिम अंगों का निर्माण करके दिखाया।

बनाए शिवलिंग, मांगी खुशहाली
महापौर सहित अन्य अतिथियों ने शिवजी की पूजा-अर्चना कर शिवलिंग का निर्माण किया। विधायक डॉ. सिकरवार एव कांग्रेस जिलाध्यक्ष डॉ. शर्मा ने विचार व्यक्त किए। इस दौरान महापौर एवं विधायक ने सामूहिक रूप से शहर के विकास, आमजन की खुशहाली और तरक्की की कामना की। कथा व्यास संत श्री गोपाल दास महाराज ने अतिथियों का सम्मान किया। आयोजन समिति के सह संयोजक अजय चोपड़ा, प्रबंधक अशोक पटसारिया, मुख्य यजमान अरविंद डंडौतिया, परीक्षित ऋतु सिंह सैंगर, साधना सांडिल्य, अंजली बत्रा, स्वदेश भोला, दिनेश भल्ला एवं अनुपम तिवारी ने अतिथियों का स्वागत किया। संचालन हरीश पाल ने किया। इस दौरान दो दर्जन से अधिक दिव्यांगों के आर्टिफिशियल लिंब, बैशाखी, कैलिपर्स व अन्य सहायक उपकरण तैयार किए गए।

राष्ट्र को दिशा देता है मर्यादित जीवन : संत गोपाल
संतश्री गोपाल दास महाराज ने कथा का श्रवण कराते हुए कहा कि अमर्यादित आचरण जीवन में दुःख-भोग का कारण बनता है। इसलिए जरूरी है कि जीवन मर्यादित हो। क्योंकि मर्यादित जीवन ही परिवार, समाज व राष्ट्र को दिशा देता है। भगवान श्रीराम तो अपने आचरण और व्यवहार से मर्यादा पुरुषोत्तम बन गए।

संतश्री ने कहा कि भगवान का नाम-जाप करने वाले का कभी कोई अहित नहीं होता है। भगवत जाप से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। प्रभु नाम-जाप से जीवन में पवित्रता आती है। इसलिए जरूरी हो जाता है कि पवित्र भाव से अहंकार मुक्त जीवन जीना चाहिए। जब जीव के मन में अहंकार आ जाता है तो फिर समस्याएं जन्म लेने लगती हैं।

उन्होंने भगवान श्रीराम, श्रीकृष्ण और जगत के पालनहार श्रीहरि के प्रसंगों का वर्णन करते हुए कहा लोग कहते हैं कि भगवान श्रीराम से श्रीकृष्ण बड़े हैं क्योंकि वे सौलह कलाओं के ज्ञाता है। लेकिन लोगों का यह भ्रम है। भगवान श्रीराम 12 कलाओं और श्रीकृष्ण को 16 कलाओं को जानकार माना जाता है। उसके पीछे भी महत्वूर्ण कारण है कि श्रीराम सूर्यवंश से हैं और श्रीकृष्ण चंद्रवंशी। सूर्य वंश में 12 और चंद्रवंश में 16 भाव हैं। ऐसे में प्रभु को किसी एक-दूसरे से कमतर आंकना मानव भूल है। भगवान तो स्वयं कहते हैं मैं तो मर्यादा में ही रहकर जीवन व्यतीत करता हॅूं। ऐसे में इंसान के लिए भी जरूरी हो जाता है कि वह अहंकार मुक्त होकर परोपकारी भाव के साथ मर्यादित जीवन का ही पालन करे।