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विश्वास से पत्थर में प्रकट होते हैं भगवान : संत गोपाल

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फूलबाग मैदान में चल रही श्रीमद् भागवत कथा एवं स्वास्थ्य मेले में धर्म और सेहत का हो रहा है संगम, कथा श्रवण के साथ ही सैकड़ों हाथ गढ़ रहे हैं पार्थिव शिवलिंग

ग्वालियर। मन में प्रभु के प्रति सच्चा विश्वास हो तो भक्त की रक्षा के लिए पत्थर से प्रकट हो जाते हैं भगवान। संत श्रीगोपाल दास महाराज ने श्रद्धेय गुरुवाणी सेवा ट्रस्ट तथा लॉयंस क्लब ऑफ ग्वालियर के तत्वावधान में फूलबाग मैदान में आयोजित की जा रही श्रीमद् भागवत कथा एवं निःशुल्क स्वास्थ्य मेले में भागवत कथा का श्रवण कराते हुए यह बात कही।
संतश्री ने कहा कि पाप के बाद कोई व्यक्ति नरकगामी हो, इसके लिए श्रीमद् भागवत में श्रेष्ठ उपाय प्रायश्चित बताया है। अजामिल उपाख्यान के माध्यम से इस बात को विस्तार से समझाया साथ ही प्रह्लाद चरित्र का भक्तिभाव से वर्णन करते हुए कहा कि भगवान नृसिंह रुप में पत्थर और लोहे से बने खंभे को फाड़कर प्रगट हुए। प्रह्लाद को विश्वास था कि मेरे भगवान लोहे के खंभे में भी है और उस विश्वास को पूर्ण करने के लिए भगवान उसी में से प्रकट हुए एवं हिरण्याकश्यप का वध कर प्रह्लाद के प्राणों की रक्षा की।

श्रीमद् भागवत कथा के चतुर्थ दिवस कथा व्यास गोपाल दास महाराज ने कहा कि किसी भी स्थान पर बिना निमंत्रण जाने से पहले इस बात का ध्यान जरूर रखना चाहिए कि जहां आप जा रहे है वहां आपका, अपने इष्ट या अपने गुरु का अपमान न हो। यदि ऐसा होने की आशंका हो तो उस स्थान पर नहीं जाना चाहिए। चाहे वह स्थान अपने जन्म दाता पिता का ही घर क्यों न हो।
सती चरित्र के प्रसंग को सुनाते हुए बताया कि कैसे भगवान शिव की बात को नहीं मानने पर सती के पिता के घर जाने से अपमानित होने के कारण स्वयं को अग्नि में स्वाह होना पड़ा।

संतश्री ने महाभारत रामायण से जुड़े विभिन्न प्रसंग सुनाए। साथ ही उन्होंने कहा कि परम सत्ता में विश्वास रखते हुए हमेशा सद्कर्म करते रहना चाहिए। सत्संग हमें भलाई के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है।
अजामिल एवं प्रहलाद चरित्र के विस्तार पूर्वक वर्णन के साथ संगीतमय प्रवचन दिए। उन्होंने कहा कि जब तक जीव माता के गर्भ में रहता है तब तक वह बाहर निकलने के लिये छटपटाता रहता है। उस समय वह जीव बाहर निकलने के लिये ईश्वर से अनेक प्रकार के वादे करता है। लेकिन जन्म लेने के पश्चात सांसारिक मोह माया में फंस कर वह भगवान से किए गए वादों को भूल जाता है। जिसके परिणामस्वरूप उसे चौरासी लाख योनी भोगनी पड़ती है।
व्यक्ति अपने जीवन में जिस प्रकार के कर्म करता है उसी के अनुरूप उसे मृत्यु मिलती है। व्यक्ति की साधना,उनके सत्कर्म तथा ईश्वर के प्रति अटूट श्रद्धा के परिणाम स्वरूप ही उन्हें वैकुंठ लोक प्राप्त होता है। भक्ति के लिए कोई उम्र बाधा नहीं है। भक्ति को बचपन में ही करने की प्रेरणा देनी चाहिए क्योंकि बचपन कच्चे मिट्टी की तरह होता है उसे जैसा चाहे वैसा पात्र बनाया जा सकता है। मुख्य यजमान अरविंद गोपेश्वर डंडौतिया मुरैना एवं परीक्षित ऋतु सिंह सैंगर ने कथा की आरती की।

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