आत्मा की आवाज है विवेक
अंतरराष्ट्रीय विवेक दिवस पर विशेष
जीवन में असाधारण मात्रा में साधारण ज्ञान को ही विवेक कहते हैं। संसार के समस्त प्राणियों में श्रेष्ठ प्राणी मनुष्य है। मनुष्य के मानस की बड़ी शक्ति है विवेक, जिसके पीछे मन और बुद्धि की भूमिका शामिल है। मन को विचारों का पुंज कहा गया है। यह अपनी सोच से बाहरी दुनिया का अनुभव करता रहता है। विवेक व्यक्ति की एक व्यक्तिगत नैतिक भावना है, जो यह निर्धारित करने में सहायता करती है कि क्या सही है और क्या गलत? विवेक के बारे में अधिक अध्ययन कर हम अत्याधिक विवेक वाले बेहतर व्यक्ति बन सकते हैं। अंतरराष्ट्रीय विवेक दिवस पर समझते हैं जीवन का आधार और आत्मा की आवाज विवेक का महत्व…..
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डॉ. केशव पाण्डेय
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5 अप्रैल को प्रतिवर्ष अंतरराष्ट्रीय विवेक दिवस मनाया जाता है, जो मानव विवेक के मूल्य को दर्शाता है। इस दिन को मनाने का उद्देश्य मानवीय विवेक के महत्व को पहचानना और करुणा की दिशा में कदम उठाने के लिए प्रोत्साहित करना है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 25 जुलाई 2019 को इस दिवस की घोषणा की थी। 5 अपै्रल 2020 में पहला अंतरराष्ट्रीय विवेक दिवस मनाया गया, तब से यह सिलसिला जारी है। “प्रेम और विवेक के साथ शांति की संस्कृति को बढ़ावा देना” इसकी थीम है।
यह आत्म-परीक्षण और नैतिक रूप से कार्य करने के मूल्य पर जोर देने का अवसर है। ताकि आवश्यक सुधारों को इंगित करके समग्र रूप से समाज के विकास में भी मदद की जा सके।
संयुक्त राष्ट्र संगठन के अनुसार, “भविष्य की पीढ़ियों को युद्ध के अभिशाप से बचाने संयुक्त राष्ट्र के कार्य के लिए शांति की संस्कृति की और परिवर्तन की आवश्यकता है। जो अपने समाज की विकास प्रक्रिया में पूरी तरह से भाग लेने के लिए सभी अधिकारों और साधनों के पूर्ण प्रयोग की गारंटी देते हों।“
क्योंकि जीवन में किसी भी कार्य को करने और उसमें सफलता पाने के लिए बुद्धि और विवेक की आवश्यकता पड़ती है। जो कार्य आप कभी अपने बल से नहीं कर सकते हैं, उसे आप बुद्धि की मदद से बड़ी आसानी से कर सकते हैं। जिसके पास स्वयं का विवेक नहीं है, शास्त्र उसका क्या करेंगे? जैसे नेत्रविहीन व्यक्ति के लिए दर्पण व्यर्थ है।
मानव मन बड़ी मुश्किल से टिकता है। जब मन सोच-विचारों को स्वीकार करता है तो इसका नियमन बुद्धि करती है। जिससे यह बुद्धि जुड़ी हुई है। बुद्धि सुमति और कुमति दो रूपों वाली है। जो कर्म-क्रिया की प्रेरक है। बुद्धिमान व्यक्ति ही सुमति से अपने कार्य का सफल निष्पादन कर लेता है। सुमति सद्बुद्धि से विवेक और कुमति अविवेक देती है। मनुष्य विवेक के आलोक में रहे तो बुद्धि सही निर्णय लेने में सफल हुआ करती है। लौकिक जगत की सांसारिक-भौतिक जरूरतें और आविष्कार जो मानवीय बुद्धि से लोगों तक पहुंचकर उपयोगी साबित हुए हैं।
दुनिया में जितने भी आविष्कार हुए वह सब इसी बुद्धि कौशल के कारण संभव हुए। सुमति या सद्बुद्धि सात्विक प्रवृत्ति की है। इसके विपरीत यह बुद्धि कुप्रेरणा और कुसंग के कारण दूषित हुई। इसी संसार में अनेक अच्छाइयों और बुराइयों के उदाहरण शामिल हैं। मनुष्य अपनी ग्रहणशीलता से कितनी अच्छाइयों को आत्मसात करता हुआ विवेकशील हो, यह उस पर निर्भर है। मनुष्य की श्रेष्ठता व सार्थकता विवेकपूर्ण जीवन जीने में है। विवेकशीलता के अभाव में मनुष्य सच्चा सुख और शांति से दूर होता जा रहा है। सत्कर्म का कारण बुद्धि की प्रेरक शक्ति विवेक ही है।
जो सत्प्रेरणा के साथ उचित निर्णय करने में सहायक है। इसीलिए विवेकपूर्ण कृत्य के दोष रहित होने की संभावना बलवती बनी रहती है। वस्तुस्थिति का सही मूल्यांकन कर सकना, कर्म के प्रतिफल का गंभीरतापूर्वक निष्कर्ष निकालकर श्रेयस्कर दिशा देने की क्षमता केवल विवेक में होती है। उचित-अनुचित के सम्मिश्रण में से श्रेयस्कर को अपना लेना विवेक बुद्धि का कार्य है। विवेक के अभाव में सही दिशा का चयन नहीं हो सकता। मनुष्य विवेक द्वारा ही भावनाओं के प्रवाह और अति श्रद्धा या अंध श्रद्धा से बच सकता है। विश्वास का प्रयोग अपने से कहां तक और कितना किया जाता है, इसका निश्चय विवेक बुद्धि ही कराती है। विवेक जागरूकता की कुंजी है। विवेकशीलता को ही सत्य की प्राप्ति का साधन कहा जा सकता है।
ऐसे में जरूरी हो जाता है कि हम अपने विवेक को समझें। आजकल लोग विवेक के बारे में बहुत सुनते हैं,जिससे बहस छिड़ जाती है और ज़रूरत पड़ने पर सुधारात्मक कार्रवाई भी की जाती है। विवेक की जांच करने से हमें दूसरों के नैतिक सिद्धांतों को समझने में मदद मिल सकती है।
इसकी वजह है कि प्रत्येक व्यक्ति के भीतर एक नैतिक आवाज होती है, जिसे हम ’विवेक’ कहते हैं। यह विवेक हमें सही और गलत में अंतर करने, न्याय की भावना को अपनाने और सामाजिक समरसता की दिशा में कार्य करने की प्रेरणा देता है।
भारत, “सर्वे भवंतु सुखिनः“ और “वसुधैव कुटुम्बकम“ जैसे सिद्धांतों पर आधारित एक सांस्कृतिक राष्ट्र है, जो सदियों से विवेक और नैतिकता की मिसाल रहा है। प्राचीन भारतीय ग्रंथों,वेद, उपनिषद, भगवद गीता और रामायण में विवेक को आत्मा की आवाज़ माना गया है।
रामचरित मानस में तुलसीदास जी ने लिखा है कि “बिनु सत्संग विवेक न होई। राम कृपा बिनु सुलभ न सोई।। “ इस चौपाई के माध्यम से तुलसीदास जी सत्संग की महिमा बताते हैं। इसका अर्थ है कि प्रभु को पाने के लिए भी प्रभु की कृपा आवश्यक है, इसके लिए विवेक जरूरी है।
संतों और महापुरुषों, जैसे-महात्मा गांधी, स्वामी विवेकानंद, रवींद्रनाथ टैगोर, और डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने भी अपने जीवन में विवेक आधारित निर्णयों को प्राथमिकता और देश को एक नैतिक दिशा दी। आज के समय में भारत की नई शिक्षा नीति में भी नैतिक शिक्षा को प्रमुख स्थान दिया गया है, ताकि बच्चों में प्रारंभ से ही विवेक और नैतिक मूल्यों का विकास हो।
वर्तमान समय में जब भ्रष्टाचार, अन्याय और असहिष्णुता जैसी समस्याएँ बढ़ रही हैं, तो विवेक आधारित निर्णय लेना और अधिक महत्वपूर्ण हो गया है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में विवेकपूर्ण नागरिक ही एक सशक्त राष्ट्र का निर्माण कर सकते हैं।
भारत विविधताओं का देश है, और यहां धार्मिक, भाषाई, जातीय मतभेदों के बावजूद यदि समाज में शांति बनी हुई है, तो उसका कारण है लोगों का विवेक, जो उन्हें एक-दूसरे के प्रति सहनशील और संवेदनशील बनाता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि एक शांति-प्रिय और विवेकशील राष्ट्र के रूप में उभरी है। भारत ने विश्व मंच पर हमेशा मानवता, अहिंसा, और न्याय की बात की है।
अंतरराष्ट्रीय विवेक दिवस हमें याद दिलाता है कि व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में विवेक की कितनी अहम भूमिका है। भारत जैसे देश के लिए यह दिन और भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि हमारी सभ्यता और संस्कृति में विवेक को जीवन का आधार माना गया है। यदि प्रत्येक भारतीय अपने विवेक की आवाज़ सुने और उस पर चले, तो न केवल हमारा देश बल्कि सम्पूर्ण विश्व अधिक शांतिपूर्ण, न्यायपूर्ण और मानवतावादी बन सकता है। क्योंकि आत्मा की आवाज है विवेक … और विवेक से सदैव सबका भला ही होता है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं