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दुनिया के भाल पर कमाल सी चमकती हिंदी

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डॉ. केशव पाण्डेय

हिंदी हर भारतीय के मान, सम्मान और स्वाभिमान की भाषा है। हिंदी भाषा ही नहीं यह भावों की अभिव्यक्ति है। हिंदी मातृभूमि पर मर मिटने की भक्ति है। हिंदी हमारा ईमान है और हिंदी ही हमारी पहचान है। हिंदी महज एक भाषा नहीं बल्कि यह करोड़ों भारतीयों की संस्कृति, सभ्यता, साहित्य और इतिहास को बयां करती है और उन्हें एकता के सूत्र में पिरोती है। साक्षर हो या निरक्षर हर व्यक्ति हिंदी भाषा को आसानी से बोल व लिख सकता है। हिंदी सोच बदलने वाली भाषा है।

आज पूरी दुनिया में हिंदी दिवस मनाया जा रहा है। हर साल 10 जनवरी को विश्व हिन्दी दिवस मनाया जाता है। प्रत्येक भारतीय के लिए यह बेहद गर्व की बात है। हिंदी भाषा वक्ताओं की ताकत है, लेखकों का अभिमान है। करोड़ों भारतीय को एक सूत्र में बांधने वाली भाषा है हिंदी। हमारी आन-बान और शान है। हिंदी एकमात्र ऐसी भाषा है, जिसे हम जैसा बोलते हैं ठीक वैसे ही लिखते हैं। हिंदी को राष्ट्र की अस्मिता और प्रणम्य का प्रतीक माना जाता है। इसके हर शब्द में गंगा जैसी पावनता और गगन सी व्यापकता है। समुद्र सी गहराई और हिमालय सी ऊंचाई है। जो इसे महान बना रही है। यही वजह है कि पूरी दुनिया विश्व हिंदी दिवस मना रही है।
बात करते हैं कि आखिर कैसे शुरू हुआ विश्व हिंदी दिवस मनाने का चलन? विश्व में हिन्दी का विकास करने और एक अंतरराष्ट्रीय भाषा के तौर पर इसे प्रचारित-प्रसारित करने के उद्देश्य से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1975 में 10 जनवरी को नागपुर में पहला विश्व हिंदी सम्मेलन आयोजित किया था। जहां 30 देशों के 122 प्रतिनिधियों ने भाग लिया था।
2006 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने प्रतिवर्ष 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस मनाने की घोषणा की थी। ताकि दुनिया भर में हिंदी भाषा को बढ़ावा दिया जा सके। तब से इसकी वर्षगांठ के उपलक्ष्य में इसे हर साल मनाया जाता है।
हिंदी दिवस के लिहाज से 10 जनवरी का दिन खास महत्व रखता है। क्योंकि इसी दिन 1949 में संविधान सभा ने एक मत से निर्णय लिया था कि हिंदी ही भारत की राजभाष होगी। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 14 सितंबर को राष्ट्रीय हिंदी दिवस मनाने का फैसला लिया था।
26 जनवरी 1950 को संसद के अनुच्छेद 343 के तहत हिंदी को प्राथमिक भाषा माना गया। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 1977 में संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण देकर अपनी मातृभाषा के प्रति सम्मान दिखाया था।
फारसी शब्द से जन्मी हिंदी भारत की आधिकारिक भाषा है। भारत के अलावा फिजी, मॉरीशस, सूरीनाम, त्रिनिदाद, टोबैगो, गुयाना और नेपाल में हिंदी बोली जाती है। यही वजह है कि इंटरनेट की दुनिया में भी अब हिंदी का वर्चस्व बढ़ रहा है। और यही नहीं हिंदी भाषा के इतिहास पर पुस्तक लिखने वाला कोई हिंदुस्तानी नहीं बल्कि विदेशी (फ्रांसीसी) लेखक ग्रेसिम द टैसी था। हिंदी के बढ़ते प्रभाव के कारण ही ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में ’अच्छा’ और ’सूर्य नमस्कार’ जैसे कई हिंदी शब्दों को शामिल किया गया है।
इस बार विश्व हिंदी दिवस मनाने के लिए जो थीम निर्धारित की गई है वह है -“भारतीय उपमहाद्वीप के सभी लोग हिंदी समझें और विदेशो में भी इसका प्रचार प्रसार किया जाए।”
ऐसे में जरूरी हो जाता है कि हमारे देश में आज की पीढ़ी जो हिंदी से दूर होती जा रही है, उसके लिए भी जरूरी है कि आधुनिक परिवेश में उनकी जरूरत के मुताबिक साहित्य की रचना की जाए। हिंदी को वास्तविक रूप में लाने के लिए हमें फिर से गुरुकुल की स्थापना करनी होगी।
कारण स्पष्ट है कि विदेशों में हिंदी जनमानस के दिलो-दिमाग पर अपनी छाप छोड़ रही है। लंदन में हिंदी पढ़ाई जा रही है। जर्मन में ऐसे स्कूल हैं जहां बच्चों को हिंदी और संस्कृत पढ़ाई जा रही है। क्योंकि हिंदी सोच बदलने वाली भाषा है।यह दुनिया की प्राचीन, समृद्ध और सबसे सरल भाषा है। वर्तमान में दुनियाभर के सैकड़ों विश्वविद्यालों में हिंदी पढ़ाई जाती है और दुनियाभर के करोड़ो लोग हिंदी बोलते और लिखते हैं।
हालांकि इतने विशाल देश में एक भाषा होना संभव नहीं है लेकिन हिंदी जनमत की भाषा बन रही है साथ ही देश और दुनिया में अपना प्रभाव छोड़ रही है। कह सकते हैं कि दुनिया के भाल (मस्तिष्क) पर चंदन की भांति चमक रही है हिंदी। ऐसे में जरूरी है कि हमें अपनी भाषा को और उन्नत करने के लिए उत्कृष्ट साहित्य का सृजन करना होगा इससे देश की संप्रभुता कायम रहेगी। क्योंकि विश्व हिंदी दिवस का उद्देश्य ही हिंदी भाषा को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक नई पहचान दिलाना है। …. तो आप सभी को विश्व हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

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