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जीवन की खुशी का मंत्र हैं बुद्ध

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वैशाख मास की पूर्णिमा के दिन भगवान बुद्ध को सत्य के ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। सनातन और बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए यह दिन किसी उत्सव के समान होता है। बौद्ध मठों और मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना कर गौतम बुद्ध की उपासना की जाती है। बुद्ध जयंती के पावन अवसर पर जानते हैं विश्व गुरु और भगवान गौतम बुद्ध से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें जो आपके जीवन के लिए उपयोगी साबित होकर जिंदगी को बेहतर बना सकती हैं।

बुद्ध पूर्णिमा पर विशेष : डॉ. केशव पाण्डेय
5 मई शुक्रवार को बुद्ध पूर्णिमा है। भगवान बुद्ध का जन्म नेपाल के कपिलवस्तु स्थित लुम्बिनी नामक स्थान पर 563 ईसा पूर्व में हुआ था। जो कि वर्तमान में नेपाल का हिस्सा है। इक्ष्वाकु वंशीय क्षत्रिय शाक्यकुल के राजा शुद्धोधन इनके पिता और माता महामाया थीं। जो कोलीय वंश थीं। जिनका इनके जन्म के सात दिन बाद ही निधान हो गया। पालन पोषण महारानी की सगी बहन महाप्रजापती गौतमी ने किया। उनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था। राजकुमारी यशोधरा के साथ इनका विवाह हुआ। कम उम्र में सिद्धार्थ ने घर छोड़ दिया और सत्य की खोज में निकल गए। 27 वर्ष की आयु में बुद्ध संन्यासी बन गए। बाद में गौतम बुद्ध को महात्मा बुद्ध की उपाधि मिली। उन्होंने बौद्ध धर्म की स्थापना की। सारनाथ में भगवान बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया। बौद्ध धर्म में आस्था रखने वाले लोग गौतम बुद्ध को भगवान की तरह पूजते हैं। देश और दुनिया में बुद्ध पूर्णिमा को उत्साह, उमंग और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
धार्मिक ग्रंथों में निहित है कि वैशाख पूर्णिमा की तिथि को भगवान बुद्ध को सत्य के ज्ञान की प्राप्ति हुई। इस दिन भगवान विष्णु और बुद्ध की पूजा-अर्चना की जाती है। पद्म पुराण के अुनसार महात्मा बुद्ध को भगवान विष्णु का नौवां अवतार माना जाता है, जो सबसे आखिरी अवतार हुए। महात्मा बुद्ध ने बुध पूर्णिमा के दिन ही कुशीनगर में महाप्रयाण यानी देह त्याग किया।
बौद्ध और हिंदू धर्म के लोग बुद्ध पूर्णिमा को बहुत श्रद्धा के साथ मनाते हैं। बुद्ध पूर्णिमा का पर्व बुद्ध के आदर्शों और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। यह पर्व सभी को शांति का संदेश देता है। बौद्ध धर्म के लोगों के लिए बोधगया तीर्थस्थली है, जहां वे उपासना करते हैं और बोधिवृक्ष (पीपल का पेड़) की पूजा करते हैं।
वृक्ष पर दूध और इत्र मिला हुआ जल चढ़ाया जाता है। सरसों के तेल का दीपक पीपल के पेड़ पर जलाया जाता है। क्योंकि इसी दिन बोध गया में बोधिवृक्ष के नीचे ही उन्हें ज्ञान और बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी। वह दिन वैशाख पूर्णिमा का ही था।
यही वजह है कि बुद्ध पूर्णिमा भारत ही नहीं चीन, नेपाल, थाईलैंड, वियतनाम, मलेश्यि, कंबोडिया, म्यांमार, जापान, श्रीलंका और इंडोनेशिया सहित विभिन्न देशों में मनाई जाती है। इन देशों में बौद्ध धर्म के हजारों अनुयायी हैं जो महात्मा बुद्ध के आदर्शों को जीवन में अपनाकर उन्हें अपना भगवान मानते हैं। जबकि उत्तर प्रदेश के कुशी नगर में विशाल मेले का आयोजन किया जाता है।
बुद्ध पूर्णिमा पर अनुयायी ग्रंथों का पाठ करते हैं और सही मार्ग पर चलने का संकल्प लेते हैं। महात्मा बुद्ध ने अपने जीवन में चार आर्य सत्यों का उपदेश दिया था। उनके उपदेश जीवन में एकाग्रता और खुश रखने के लिए मूल मंत्र हैं, जिसका अनुसरण हर किसी को करना चाहिए। क्योंकि गौतम बुद्ध अपने शिष्यों को सदैव जीवन में धैर्य रखने और खुश रहने का व्यवहारिक रूप से ज्ञान देते थे। उनका मानना था कि जीवन में कई बार ऐसा होता है जब मानव अनेकों समस्याओं से घिर जाता है। तब मन अशांत हो जाता है ऐसी स्थिति में इंसान को कुछ समय के लिए हर हाल में धैर्य रखना चाहिए। धैर्य एक ऐसी औषधि है जिससे बड़ी से बड़ी समस्या रूपी बीमारी को दूर किया जा सकता है। विषम परिस्थितियों में धैर्य मन को नियंत्रित करने में सहायक होता है। धैर्य के बल पर बुरे समय से निपटा जा सकता है। इसलिए धैर्यवान होना जरूरी है। कह सकते हैं कि जीवन में खुशी का मंत्र हैं गौतम बुद्ध।

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