श्रीभाव भावेश्वर सेवा समिति द्वारा रंगमहल गार्डन में आयोजित की जा रही श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन उमड़ा श्रद्धा का सैलाब
ग्वालियर। श्रीमद्भागवत एक ऐसा कल्पवृक्ष है,जिसके नीचे बैठकर धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष,जो चाहो प्राप्त कर सकते हैं। ये जीवित अवस्था में मुक्ति की अनुभूति करवाती है। यह विचार स्वामी विद्यानंद सरस्वती ने श्रीभाव भावेश्वर सेवा समिति द्वारा रंगमहल गार्डन में आयोजित की जा रही श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन व्यक्त किए।
स्वामी विद्यानंद ने कहा कि ये एक ऐसा रस है जिसमें न तो छिलके और न गुठली है। सिर्फ रस ही रस है। इसको जितना चाहो उतना पीओ। जब तक तुम्हारी मुक्ति नहीं हो जाती तब तक भागवत रूपी अमृत को पीते रहो, क्योंकि भागवत श्रवण से जीवित अवस्था में ही मुक्ति की अनुभूति होती है।
उन्होंने कहा कि प्रारब्ध का भोग तो हर इंसान को भोगना होता है,लेकिन जब श्रीमद्भागत का श्रवण करते हुए जीवन को आनंदमय कर लेते हैं तो कष्ट भी हंस कर सह लेने की क्षमता विकसित हो जाती है। सत्यं परम धीमही का भावार्थ करते हुए कहा कि वेदव्यास ने किसी एक देव के ध्यान का आह्वान न करते हुए कहा कि सच्चिदानंद भगवान का ध्यान को कहा है। उन्होंने भागवत महापुराण मेें वेदानुकूल प्रतिपादन किया है।
उन्होंने कहा कि जो लोग इस बात का घमंड करते हैं कि मेरे समान कोई नहीं हैं, तो इस तरह का भाव उचित नहीं हैं। अंहकार मनुष्य का शत्रु है। भागवत श्रवण से अंहकार का भी नाश होता है और मनुष्य का कल्याण हो जाता है। अन्य शास्त्रों का अध्ययन करने के बावजूद तप और साधाना करनी पड़ती है,लेकिन यह मात्र श्रवण मात्र से कल्याण कर देता है। इसलिए इसका महत्व बड़ा है।
स्वामी विद्यानंद सरस्वती ने कहा कि भागवत श्रवण में भाव अहम हैं। जब श्रीमद्भागवत सुनने बैठे तो बुद्धि और तर्क साथ लेकर न जाएं, क्योंकि जब तक भाव जाग्रत नहीं होगा, भागवत से भगवत प्राप्ति नहीं हो सकती है। कई लोग बोलते हैं कि भावुकता मूर्खता का पर्याय है,लेकिन यह सोच सही नहीं हैं। भावुक ह्रदय से ही भगवत प्राप्ति संभव है। भागवत कथा को ह्रदय में अनुभुति करते हुए सुनोगो तो अतिआनंद की अनुभूति होगी।