राजस्थान के भीलवाड़ा में 800 बीघा जंगल की अवैध कटाई का मामला अब एक बड़े प्रशासनिक घोटाले का रूप ले चुका है। इस सनसनीखेज मामले ने न केवल वन विभाग की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि विभाग के अंदर चल रही कथित मिलीभगत को भी उजागर कर दिया है।
आरोप है कि बड़े पैमाने पर पेड़ों को काटकर लकड़ी को कोयला माफियाओं को बेचा गया। हैरानी की बात यह है कि इस पूरे अवैध ऑपरेशन को रोकने के बजाय विभाग के कई अधिकारी इसमें शामिल पाए गए।
मामले में सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि फॉरेस्टर विश्राम मीणा और सहायक वनपाल शंकर माली ने ही सबसे पहले इस अवैध कटाई की जानकारी उच्च अधिकारियों तक पहुंचाई थी। लेकिन कार्रवाई करने के बजाय उन्हीं दोनों को सस्पेंड कर दिया गया। इससे विभाग की नीयत और पारदर्शिता पर बड़े सवाल खड़े हो गए हैं।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारी DFO गौरव गर्ग और ACF पायल माथुर को कटाई की शुरुआत से ही जानकारी थी, लेकिन इसके बावजूद पेड़ों की कटाई रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। विभागीय जांच में दोनों अधिकारी दोषी पाए गए, लेकिन जानकारों का दावा है कि जांच रिपोर्ट को जानबूझकर दबा दिया गया, जिससे कार्रवाई आगे नहीं बढ़ सकी।
स्थानीय लोगों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह मामला सिर्फ जंगल की कटाई तक सीमित नहीं है, बल्कि यह “अंदरूनी संरक्षण” की एक बड़ी कहानी है, जिसने जंगलों की सुरक्षा और सरकारी तंत्र की विश्वसनीयता पर गहरा अविश्वास पैदा किया है।
फिलहाल मामला सरकार और वन विभाग के वरिष्ठ स्तर तक पहुंच चुका है, लेकिन वास्तविक कार्रवाई और जिम्मेदारों पर सख्त कदम कब तक होंगे।यह सवाल अभी भी अनुत्तरित है।