आरोग्य भारती के दो दिवसीय प्रतिनिधि मंडल सम्मेलन के दूसरे दिन केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य ने की शिरकत
ग्वालियर। आज समय बदल चुका है। जीवन में आपाधापी और काम का दबाव ज्यादा होने से लोग तनाव में जी रहे हैं। शारीरिक रोग के साथ-साथ मानसिक रोग तेजी से बढ़ते जा रहे हैं। इसलिए इसकी रोकथाम के लिए आरोग्य भारती को प्रयास करना चाहिए।
केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने रविवार को राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय के दत्तोपंत ठेंगड़ी सभागार में आयोजित आरोग्य भारती के दो दिवसीय अखिल भारतीय प्रतिनिधि मंडल सम्मेलन के समापन समारोह में बतौर मुख्यअतिथि यह बात कही।
इस अवसर पर आरोग्य भारती के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ.राकेश पंडित, राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य डॉ. मुधुसूदन देशपांडे, मिहिर कुमार, स्वामी नारायण, प्रवीण प्रभाकर विशेष रूप से मंच पर मौजूद थे।
अनुसंधान और नवाचार पर हो ध्यान
केंद्रीय मंत्री सिंधिया ने कहा कि तनाव से पाचनतंत्र खराब होने के साथ ही आर्थराइटिस और मनोविकार बढ़ते जा रहे हैं। इस समस्या के निजात के लिए आरोग्य भारती सेवाभावी युवाओं को अपने साथ जोडऩे का अभियान चलाए साथ ही अनुसंधान और नवाचार भी ध्यान देने की जरूरत है।
भारत पुनः विश्व गुरु बने
सिंधिया ने कहा कि हम पहले विश्व गुरू थे और 2047 तक जब भारत अपनी शताब्दीकाल आजादी को हर्षोल्लासे से मनाएगा तब भारत दोबारा विश्व गुरू के रूप में स्थापित हो यह सभी का संकल्प होना चाहिए। इसको हासिल करने के लिए आरोग्य भारती जैसी संस्थाओं को एक महत्वपूर्ण योगदान देना चाहिए।

दर्शनशास्त्र है भारत का धर्म
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि भारत केवल देश ही नहीं दर्शन शास्त्र है। जीवन कैसे जिया जाए, विचार कैसे होने चाहिए यह हजारों साल पहले हमारे शास्त्रों में बताया गया है। उपनिषद का श्लोक सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामया। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मां कश्चिद दुःख भाग्भवेत्। अर्थात सभी सुखी रहें, सभी रोग मुक्त रहें। सभी देखें कि क्या शुभ है यानी मंगलमय के साक्षी बनें, किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े। इसका एक उदाहरण है। भारत आज भी इसी सोच और विचार पर कायम है। हमारी सोच समाज और राष्ट्र तक सीमित नहीं है बल्कि वसुधैव कुटुम्बकम की है। यह परिचय केवल भारत वासियों के लिए ही नहीं है। यह विश्व के 800 करोड लोगों के लिए आज के आधुनिक युग में उतना ही महत्वपूर्ण है।
सिंधिया ने आरोग्य भारती के कार्यों की सराहना करते हुए कहा कि यह संस्था नर सेवा और नारायण सेवा के मूलमंत्र के साथ काम में जुटी है। साथ ही उन्होंने सम्मेलन के शुभारंभ दिवस पर न आ पाने के लिए क्षमा भी मांगी। उनका कहना था कि 21 सितंबर को उनकी आजी अम्मा राजमाता साहब का श्राद्ध था, जिस कारण वह नहीं आ सके थे।
PostedBy : विजय पाण्डेय