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डॉ. भीमराव आंबेडकर: छोटे राज्यों के निर्माण के पैरोकार

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📅 प्रकाशन: अंबेडकर जयंती विशेष | SandhyaSamachar.com


आंबेडकर का दृष्टिकोण: छोटे राज्य, बेहतर शासन

भारत रत्न डॉ. भीमराव अंबेडकर केवल संविधान निर्माता नहीं थे, बल्कि वे एक दूरदर्शी चिंतक भी थे। उन्होंने भारत में छोटे राज्यों के निर्माण की वकालत बहुत पहले कर दी थी। उनका मानना था कि बड़े राज्य शासन और प्रशासन में बाधा डालते हैं और लोकतांत्रिक जवाबदेही को कमजोर करते हैं।


आंबेडकर का तर्क: छोटे राज्य ज्यादा प्रबंधनीय होते हैं

डॉ. आंबेडकर ने स्पष्ट रूप से कहा था कि बड़े राज्य न तो प्रशासन योग्य होते हैं और न ही लोकतांत्रिक व्यवस्था में नागरिकों को समुचित भागीदारी दे सकते हैं। इसके विपरीत, छोटे राज्य अधिक उत्तरदायी, व्यवस्थित, और विकासोन्मुख होते हैं।


1955 में लिखा गया दृष्टिकोण: मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार का विभाजन जरूरी

साल 1955 में लिखी गई अपनी पुस्तक “थॉट्स ऑन लिंग्विस्टिक स्टेट्स” में डॉ. आंबेडकर ने मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, और बिहार जैसे बड़े राज्यों को विभाजित करने का सुझाव दिया था। उन्होंने यह तर्क दिया कि बड़े भाषाई राज्य लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ हैं।

✍️ “राज्य न केवल प्रशासनिक क्षमता के लिए, बल्कि यह सुनिश्चित करने के लिए भी विभाजित किए जाने चाहिए कि कोई भी समुदाय हाशिए पर न रहे।” — डॉ. आंबेडकर


उत्तर प्रदेश को तीन भागों में बांटने का प्रस्ताव

डॉ. आंबेडकर ने उत्तर प्रदेश को तीन राज्यों में विभाजित करने का सुझाव दिया था, जिनकी राजधानियां उन्होंने मेरठ, कानपुर और इलाहाबाद (प्रयागराज) प्रस्तावित की थीं। प्रत्येक राज्य की जनसंख्या लगभग 2 करोड़ के आसपास होनी चाहिए — यह उन्होंने स्पष्ट किया।


छोटे राज्यों का लाभ: खर्च पर नियंत्रण, जवाबदेही में वृद्धि

आंबेडकर के अनुसार, छोटे राज्य नागरिकों को शासन और खर्चों पर अधिक नियंत्रण की सुविधा देते हैं। बड़े राज्यों में न केवल खर्च अधिक होता है, बल्कि जनता का प्रभाव शासन पर कमजोर पड़ता है। इसीलिए उन्होंने विकेंद्रीकरण और संघीय ढांचे को मजबूत करने के लिए छोटे राज्यों की आवश्यकता पर बल दिया।


भावनाओं से नहीं, व्यावहारिकता से हो राज्य पुनर्गठन

आंबेडकर ने भावनात्मक और भाषाई आधार पर राज्य निर्माण के प्रति सावधानी बरतने की सलाह दी थी। उन्होंने कहा कि राज्य सीमाएं राष्ट्रीय एकता और प्रशासनिक दक्षता को ध्यान में रखकर तय की जानी चाहिए, न कि केवल भावनात्मक अपील के आधार पर।


डॉ. आंबेडकर की सोच से बनी राह: झारखंड और छत्तीसगढ़ का गठन

हालांकि उनके सुझावों को तुरंत नहीं अपनाया गया, लेकिन उनके विचार वर्षों बाद सार्थक सिद्ध हुए। साल 2000 में झारखंड (बिहार से) और छत्तीसगढ़ (मध्य प्रदेश से) का गठन किया गया — यह उसी सोच की परिणति थी।


मायावती का प्रस्ताव और आज की प्रासंगिकता

वर्ष 2011 में उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने भी आंबेडकर की सोच को आगे बढ़ाते हुए यूपी को चार भागों में बांटने का प्रस्ताव दिया था – पूर्वांचल, पश्चिम प्रदेश, बुंदेलखंड, और अवध। हालांकि यह प्रस्ताव पारित नहीं हो सका।


निष्कर्ष: आज भी प्रासंगिक हैं आंबेडकर के विचार

आज जब हम डॉ. अंबेडकर जयंती मना रहे हैं, उनके विचार भारत के संघवाद, राज्य प्रशासन सुधार, और विकेन्द्रित शासन प्रणाली की नींव को और मजबूत करने का मार्ग दिखाते हैं। छोटे राज्यों का विचार केवल एक राजनीतिक मुद्दा नहीं, बल्कि सशक्त और समावेशी भारत की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।


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