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हमारा लोक साहित्य हिन्दी की प्राणशक्ति- शुक्ल।

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ग्वालियर। किसी भी साहित्य की अमरता इस बात पर निर्भर है कि उसकी जडें़ लोक भाषा में कितनी गहरी है। लोकचेतना से अनुप्रणिता साहित्य ही हिन्दी की प्राणशक्ति है। उक्त विचार रवीन्द्र शुक्ल, झांसी ने लोक साहित्य महोत्सव की राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए व्यक्त किये। अवसर था ग्वालियर में साहित्य संस्थान द्वारा आयोजित भारतीय ज्ञान परंपरा और लोक साहित्य विषय पर कला वीथिका सभागार में लोक-कवियों एवं कलाकारों द्वारा लोक साहित्य की परंपरा पर राष्ट्रीय सेमीनार का संस्कृति विभाग, भोपाल द्वारा इस भव्य समारोह में सागर के ऋषि विश्वकर्मा (लोककला मंडल) द्वारा लोकगीतों का वाद्य यंत्रों के साथ सांगीतिक प्रस्तुति को खूब सराहा गया।

डॉ भगवान स्वरूप चैतन्य, डॉ कल्पना शर्मा, डॉ गिरिजा नरवरिया, डॉ आशा वर्मा, डॉ आशा पाण्डेय, डॉ रेजु चंद्रा (उरई), श्री महेश कटारे सुगम, डॉ प्रेमलता नीलम, डॉ सतीश चतुर्वेदी (शाकंतल), डॉ बृजेश श्रीवास्तव, डॉ सुभाष अरोरा, राकेश अचल एवं महेन्द्र भटट ने अपनी रचनाएं प्रस्तुत कर संगोष्ठी में श्रोताओं को लोकरस से सराबोर कर दिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ राधावल्लभ शर्मा (भोपाल) ने की व कार्यक्रम के अंत में डॉ अशोक मिश्रा ने उपस्थित सभी कवियों व श्रोताओं का अभार वयक्त किया। समारोह में विशेष अतिथि के रूप में प्रो अविनाश तिवारी, कुलपति जीवाजी विश्वविद्यालय के साथ प्रो हेमंत शर्मा एवं डॉ केशव पाण्डेय विशेष रूप से उपस्थित रहे।

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