क्या पाकिस्तान बना रहा है ‘इस्लामिक NATO’? सऊदी डील के बाद उठे सवाल

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क्या पाकिस्तान बना रहा है ‘इस्लामिक NATO’? सऊदी डील के बाद उठे सवाल

पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच हुए रणनीतिक पारस्परिक रक्षा समझौते ने मध्य-पूर्व की राजनीति में हलचल मचा दी है। इस डील के तहत अगर किसी एक देश पर हमला होता है, तो उसे दोनों देशों पर हमला माना जाएगा। यह व्यवस्था बिल्कुल वैसी ही है जैसी पश्चिमी देशों के सैन्य संगठन NATO में देखने को मिलती है।

पाकिस्तान-सऊदी रक्षा समझौते की अहमियत

पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने कहा है कि इस डील में अन्य अरब देशों की एंट्री को खारिज नहीं किया जा सकता। यानी भविष्य में यह समझौता खाड़ी के अन्य मुस्लिम देशों तक भी फैल सकता है। आसिफ ने साफ किया कि “दरवाजे बंद नहीं हैं” और यह एक व्यापक सुरक्षा गठबंधन का रूप ले सकता है।

NATO क्या है और क्यों हो रही तुलना?

NATO यानी नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन की स्थापना दूसरे विश्व युद्ध के बाद 30 देशों ने मिलकर की थी। इसका उद्देश्य था सोवियत रूस के खिलाफ सामूहिक सुरक्षा। अमेरिका, कनाडा और पश्चिमी यूरोपीय देशों के इस संगठन का हेडक्वार्टर बेल्जियम की राजधानी ब्रुसेल्स में है। आज भी इसमें अमेरिका और परमाणु शक्ति संपन्न देश (फ्रांस, यूके) का वर्चस्व है।

पाकिस्तान का इशारा: मुस्लिम देशों का सामूहिक सुरक्षा ढांचा?

पाक रक्षा मंत्री ने इंटरव्यू में कहा कि मध्य-पूर्व के इतिहास को देखते हुए लंबे समय से नाटो जैसी व्यवस्था की मांग रही है। पाकिस्तान खुद को इन हालातों में सबसे ज्यादा असुरक्षित मानता है और यही वजह है कि उसने सऊदी के साथ यह डील की। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि भविष्य में पाकिस्तान अन्य मुस्लिम देशों के साथ भी ऐसे समझौते कर सकता है।

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अमेरिका और पश्चिमी देशों की चिंता

एक वरिष्ठ सऊदी अधिकारी ने फाइनेंशियल टाइम्स को बताया कि इस डील में पाकिस्तान की परमाणु सुरक्षा छतरी का भी रोल है। यही कारण है कि अमेरिकी एक्सपर्ट्स ने चिंता जताई है।

अमेरिका के पूर्व डिप्लोमेट जल्मय खलीलजाद ने कहा कि यह डील “खतरनाक समय” में आई है। उन्होंने चेतावनी दी कि पाकिस्तान के परमाणु हथियार और डिलीवरी सिस्टम पूरे मध्य-पूर्व में, यहां तक कि इजरायल और भविष्य में अमेरिका तक भी पहुंच सकते हैं।

नतीजा: ‘इस्लामिक NATO’ की शुरुआत?

पाकिस्तान और सऊदी के इस समझौते ने यह बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या मुस्लिम देशों का कोई साझा सैन्य संगठन बनने की दिशा तय हो रही है। अगर ऐसा होता है तो यह न सिर्फ मध्य-पूर्व बल्कि पूरी दुनिया की रणनीतिक समीकरणों को बदल सकता है।

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