पद्मश्री से सम्मानित जल के पहरेदार उमाशंकर पाण्डेय ने मीडिया से रूबरू होते कहा जल के लिए करना होगा जन आंदोलन
ग्वालियर। जल संकट मानव के अस्तित्व से जुड़ा एक मुद्दा है, इसलिए आवश्यक है कि जन भागीदारी और सामूहिक प्रयासों से इस समस्या से निपटा जाए। भूजल के अति दोहन ने अनेक समस्याओं को जन्म दिया है। भविष्य में जल संकट एक गंभीर समस्या होगी, इसलिए अभी से लोगों को चेतना होगा। क्योंकि पानी सरकार नहीं समाज का मुद्दा है।

देश के जानेमानेे जल योद्धा और पानी के पहरेदार के नाम से प्रख्यात पद्मश्री उमाशंकर पाण्डेय ने मंगलवार को इंटरनेशनल सेंटर ऑफ मीडिया एक्सीलेंस (आईकाॅम) पर मीडिया से रूबरू होते हुए यह बात कही।
2005 में खेत में मेड़ … मेड़ पर पेड़ अभियान का आगाज कर दो दशक में सूखे बुंदेलखंड में पानी की बहार लाने वाले पाण्डेय ने कहा कि जल संवर्धन का पहला सिंद्धात है जल का संरक्षण उसी स्थान पर होना चाहिए, जहां जल की बूंदे गिरती हैं। जब पृथ्वी पर गिरी जल की बूंदे अपने स्थान से आगे बढ़ जाती हैं तो उसके संरक्षण के प्रयास अनर्थकारी हो जाते हैं। खेत जल संरक्षण की एक समुदायिक परंपरा रही है।
हजारों वर्षों के चिंतन मनन के बाद भारत के प्राचीन ऋषि मुनियों ने जल संरक्षण की अत्यंत विश्वसनीय तथा कम लागत वाली संरचनाएं विकसित की थीं ये सारी व्यवस्थाएं समाज आधारित थीं।

उन्होंने कहा कि आज जल का दोहन हो रहा है। कुंआ हम पूर रहे हैं, तालाबों पर कब्जा हो रहा है और नदी में हम घर बना रहे हैं। ये हमारी धरोहर हैं इन्हें हमें बचाना होगा।
30वर्ष से भूजल संरक्षण क लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले उमाशंकर ने कहा कि मेड़ बंदी वरदान है, जिसके चमत्कारिक परिणाम सामने आए हैं। बुंदेलखंड में 15 साल में अभियान से तकदीर और तस्वीर बदल गई है। जहां चावल का एक दाना पैदा नहीं होता था वहां पिछले एक दशक में सरकार ने धान खरीदी के सरकारी केंद्र खोलें हैं और बासमती चावल बनाने के लिए करोड़ों की लागत की चावल मिल स्थापित की गई हैं। बुंदेलखंड के हर गांव का खाद्यान्न उत्पादन का एरिया बढ़ा है। जल स्तर बढ़ा है। मेड़ के ऊपर पेड़ से पानी बढ़ा है और पर्यावरण भी शुद्ध हुआ है। जलवायु परिवर्तन से बचने के लिए एक छोटी सी पहल है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात में मेड़ बंदी की तारीफ करते हुए देशभर के प्रधानों सेे इस अभियान को अपनाने का आग्रह किया था।
उन्होंने कहा कि आने वाले समय में पानी संकट एक गंभीर समस्या होगी। तीसरा विश्व युद्ध भी पानी को लेकर ही होगा। आजादी से पूर्व स्वराज की लड़ाई एक जन आंदोलन बनी थी लेकिन आज जल आंदोलन को जन आंदोलन कौन बनाएगा?
उन्होंने कहा कि 1930 में ग्वालियर देश में सबसे बेहतर जल प्रबंधन के लिए जाना जाता था, मुरार की बैशली नदी को विष का हरण करने वाली कहा जाता था लेकिन 95 वर्षों में हालात बदल गए हैं हकीकत आपके सामने हैं। आज पूर्व विधायक मुन्नालाल गोयल एवं डाॅ. केशव पाण्डेय ने मुरार नदी को बचाने के अभियान का जो शंखनाद किया वह नदी बचाने के साथ ग्वालियर के भाग्य का निर्माण करने वाला हैं। भगवान इन्हें लंबी उम्र दे ताकि यह नदी को पुनर्जीवित कर सकें।
उन्होंने आम जन से आग्रह करते हुए दो महत्वपूर्ण बात कहीं,पहली – खेत का पानी खेत में, नदी का पानी रेत में। गांव का पानी ताल में और काम आए अकाल में। दूसरी- खेत का पानी खेत में, खेत की मिट्टी खेत में। गांव का पानी ताल में, ताल का पानी पाताल में। साथ ही संदेश दिया कि पानी के न होने का रोना रोने की बजाय, पानी की हर उस बूंद को रोकने का प्रयास किया जाना चाहिए जो जमीन पर गिर रही हैं।
PostedBy : विजय पाण्डेय