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राष्ट्र के प्रति हितबद्ध हो पत्रकारिता

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हिंदी पत्रकारिता दिवस पर विशेष – डॉ. केशव पाण्डेय
196 साल की भारतीय पत्रकारिता ने आपातकाल और अघोषित आपातकाल भी देखा है। अनेक यातनाओं और बाधाओं के साथ प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद पत्रकारिता ने अपनी विकास यात्रा तय की है। 2026 में हिंदी पत्रकारिता 200 वर्षों की हो जाएगी। भारतीय लोकतंत्र के संरक्षण और संवर्धन में हिंदी पत्रकारिता का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। हिंदी पत्रकारिता दिवस पर जानते हैं भारतीय पत्रकारिता का अतीत, वर्तमान और भविष्य की संभावनाएं।


“खींचो न कमानों को न तलवार निकालो। जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो।“ अकबर इलाहाबादी का यह शेर पत्रकारिता के महत्व और उसकी ताकत बताने के लिए काफी है। आज यानी 30 मई को भारतीय हिंदी पत्रकारिता 197 वर्ष की हो रही है। आज के ही दिन भारतीय इतिहास में हिंदी पत्रकारिता का सूर्योदय हुआ था। कानपुर के पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने 30 मई 1826 को कलकत्ता से हिन्दी का पहला साप्ताहिक समाचार-पत्र “उदन्त मार्तण्ड“ छापा था। इसलिए इस दिन को हिंदी पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाया जाता है।
दो शताब्दी पूर्व ब्रिटिश कालीन भारत में जब तत्कालीन हिन्दुस्तान में महज अंग्रेजी, फ़ारसी, उर्दू एवं बांग्ला भाषा में अखबार छपते थे, तब अंग्रेजों की नाक के नीचे उन्होंने हिन्दी पत्रकारिता की आधारशिला रखी। उदन्त मार्तण्ड समाचार-पत्र हिंदी की खड़ी बोली और ब्रज भाषा में प्रकाशित होता था। हालांकि भारत में पत्रकारिता का जनक जेम्स ऑगस्टस हिक्की को माना जाता है। हिन्दी पत्रकारिता की कहानी भारतीय राष्ट्रीयता की कहानी है।
हिन्दी पत्रकारिता के आदि उन्नायक जातीय चेतना, युगबोध और अपने महत् दायित्व के प्रति पूर्ण सचेत थे। इसलिए विदेशी सरकार की दमन-नीति का उन्हें शिकार होना पड़ा था। नृशंस व्यवहार की यातना झेलनी पड़ी थी।
हिंदी पत्रकारिता का यह सौभाग्य रहा कि समय और समाज के प्रति जागरूक पत्रकारों ने निश्चित लक्ष्य राष्ट्रीयता, सांस्कृतिक उत्थान और लोकजागरण के लिए अपने को जोड़ा। तब पत्रकारिता एक मिशन थी, राष्ट्रीय महत्व के उद्देश्य पत्रकारिता की कसौटी थे और पत्रकार एक निडर व्यक्तित्व लेकर खुद भी आगे बढ़ता था और दूसरों को प्रेरित करता था। हिंदी के इन पत्रकारों ने न तो ब्रिटिश साम्राज्य के सामने घुटने टेके और न ही अपने आदर्शों से च्युत हुए इसीलिए समाज में इन पत्रकारों को अथाह सम्मान मिला।
वर्तमान में हिन्दी पत्रकारिता ने अंग्रेजी पत्रकारिता के दबदबे को खत्म कर दिया है। पहले देश-विदेश में अंग्रेजी पत्रकारिता का प्रभाव था लेकिन आज हिन्दी भाषा का चारों दिशाओं में परचम लहरा रहा है।
हिंदी पत्रकारिता के इतिहास की बात करे तों तो हम 1826 से 1873 तक को हम हिंदी पत्रकारिता का पहला चरण कह सकते हैं। 1873 में भारतेन्दु ने “हरिश्चंद्र मैगजीन“ की स्थापना की। वैसे भारतेन्दु का “कविवचन सुधा“ पत्र 1867 में ही सामने आ गया था और उसने पत्रकारिता के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
हिंदी पत्रकारिता का दूसरा युग 1873 से 1900 तक चलता है। इन 27 वर्षों में प्रकाशित पत्रों की संख्या 350 से अधिक थी। ये नागपुर तक फैले हुए थें। अधिकांश पत्र मासिक या साप्ताहिक थे।
बीसवीं शताब्दी की पत्रकारिता हमारे लिए अपेक्षाकृत निकट है और उसमें बहुत कुछ पिछले युग की पत्रकारिता की ही विविधता और बहुरूपता मिलती है। 19वीं शती के पत्रकारों को भाषा-शैली क्षेत्र में अव्यवस्था का सामना करना पड़ा था। साहित्यिक पत्रों के क्षेत्र में पहले दो दशकों में आचार्य द्विवेदी द्वारा संपादित “सरस्वती“ (1903-1918) का नेतृत्व रहा। “सरस्वती“ के माध्यम से आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी और “इंदु“ के माध्यम से पंडित रूपनारायण पाण्डेय ने जिस संपादकीय सतर्कता, अध्यवसाय और ईमानदारी का आदर्श हमारे सामने रखा वह हिन्दी पत्रकारिता को एक नई दिशा देने में समर्थ हुआ। लेकिन राजनीतिक क्षेत्र में हिन्दी पत्रकारिता को नेतृत्व प्राप्त नहीं हो सका। पिछले युग की राजनीतिक पत्रकारिता का केंद्र कलकत्ता था। जिसका हिंदी भाषी प्रदेशों में ज्यादा प्रभाव नहीं था। हिंदी प्रदेश का पहला दैनिक 1883 में राजा रामपालसिंह का द्विभाषीय “हिंदुस्तान“ था जो अंग्रेजी और हिंदी में प्रकाशित होता था।
1921 के बाद हिंदी पत्रकारिता का समसामयिक या आधुनिक युग आरंभ हुआ। इस युग में हम राष्ट्रीय और साहित्यिक चेतना को एकसाथ पल्लवित पाते हैं। 1921 के बाद महात्मा गांधी जी के नेतृत्व में राष्ट्रीय आंदोलन मध्यवर्ग तक सीमित न रहकर ग्रामीणों और श्रमिकों तक पहुंच गया और उसके इस प्रसार में हिंदी पत्रकारिता ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। सच तो यह है कि हिंदी पत्रकार राष्ट्रीय आंदोलनों की अग्र पंक्ति में थे और उन्होंने विदेशी सत्ता से डटकर मोर्चा लिया।
विदेशी सरकार ने अनेक बार नए-नए कानून बनाकर समाचार-पत्रों की स्वतंत्रता पर कुठाराघात किया। जेल, जुर्माना और अनेक मानसिक और आर्थिक कठिनाइयाँ झेलते हुए भी हिन्दी पत्रकारों ने स्वतंत्र विचार की दीपशिखा जलाए रखी। 17 जनवरी 1920 को माखनलाल चतुर्वेदी के संपादकतत्व में जबलपुर से कर्मवीर का प्रकाशन हुआ। 4 अपे्रल 1947 को नवभारत, 2 अक्टूबर 1950 को हिन्दुस्तान का नाम प्रमुख हैं। 22 मार्च 1946 को इंदौर से इंदौर समाचार का प्रकाशन पुरुषोत्तम विजय ने किया। 1947 में कानपुर से जागरण, 1948 में डोरी लाल ने आगरा से अमर उजाला 1951 में नागपुर से युगधर्म और 1964 में जालंधर से लाला जगतनारायण ने पंजाब केसरी शुरू किया।
90 के दशक में हिंदी पत्रकारिता के क्षेत्र में दैनिक जागरण, अमर उजाला और दैनिक भास्कर आदि के नगरों-कस्बों से कई संस्करण निकलने शुरू हुए। साथ ही इन दशकों में ग्रामीण इलाकों, कस्बों में फैलते बाजार में नई वस्तुओं के लिए नये उपभोक्ताओं की तलाश भी शुरू हुई। हिंदी के अखबार इन वस्तुओं के प्रचार-प्रसार का एक जरिया बन कर उभरा। साथ ही साथ अखबारों के स्थानीय संस्करणों में आंचलिक खबरों को प्रमुखता से छापे जाने लगा। इससे अखबारों के पाठकों की संख्या में इजाफा हुआ। मीडिया विशेषज्ञ सेवंती निनान ने इसे ’हिंदी की सार्वजनिक दुनिया का पुनर्विष्कार’ कहा है। वे लिखती हैं, “प्रिंट मीडिया ने स्थानीय घटनाओं के कवरेज द्वारा जिला स्तर पर हिंदी की मौजूद सार्वजनिक दुनिया का विस्तार किया है और साथ ही अखबारों के स्थानीय संस्करणों के द्वारा अनजाने में इसका पुनर्विष्कार किया है।
1990 में राष्ट्रीय पाठक सर्वेक्षण की रिपोर्ट में पांच प्रमुख अखबारों में हिन्दी का केवल एक समाचार-पत्र था। इसके बाद के सर्वे ने साबित कर दिया कि हम कितनी तेजी से बढ़ रहे हैं। 2010 के सर्वे में सबसे अधिक पढ़े जाने वाले पांच अखबारों में चार हिंदी के हैं।
गर्व की बात यह भी है कि आईआरएस सर्वे में जिन 42 शहरों को सबसे तेजी से उभरता माना गया है, उनमें से ज्यादातर हिन्दी हृदय प्रदेश के हैं। आईटी इंडस्ट्री का एक आंकड़ा बताता है कि हिन्दी और भारतीय भाषाओं में नेट पर पढ़ने-लिखने वालों की तादाद लगातार बढ़ रही है, इससे स्पष्ट है कि हिन्दी की आकांक्षाओं का यह विस्तार पत्रकारों की ओर भी देख रहा है। प्रगति की चेतना के साथ समाज की निचली कतार में बैठे लोग भी समाचार-पत्रों की पंक्तियों में दिखने चाहिएं। हिन्दी के पत्रकारों को उनसे एक कदम आगे चलना होगा ताकि उस जगह को फिर से हासिल सकें, जिसे पिछले चार दशकों में हमने लगातार खोया।
मौजूदा परिवेश या आधुनिक पत्रकारिता की बात करें तो यह महत्वपूर्ण प्रक्रियाओं को सुविधाजनक बनाती है। हम किसी भी वातावरण में निर्णय लेने के लिए डेटा और तथ्यों का उपयोग करते हैं। रोजमर्रा की दुनिया में, जो समाचार हम पढ़ते हैं और जो रिपोर्ट हम देखते हैं, वे भी हमारी पसंद और कार्यों को प्रभावित करते हैं।
पत्रकारिता में तीव्रता से हुये विकास के परिणामस्वरूप आज पूरा विश्व एक गांव के रूप में दृष्टिगत होता है। पत्रकारिता का महत्व आज हमारे दैनिक जीवन में बहुत बढ़ गया है। पत्रकारिता के प्रोडक्ट अखबार हों या टेलीविजन या फिर वेबपोर्टल न्यूज हमारे दैनिक जीवन को काफी हद तक प्रभावित करने लगे हैं।
ऐसे में सच्चाई, सटीकता और निष्पक्ष पत्रकारिता नैतिकता की आधारशिला हैं। पत्रकारों को अपनी रिपोर्टिंग में संभावित पूर्वाग्रहों को कम करने के लिए उन धर्मों, समूहों या देशों से कुछ हद तक अलगाव बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, जिनसे वे जुड़े हुए हैं। लेकिन वर्तमान में पत्रकारिता के प्रतिमान बदल गए हैं।
परिणाम स्वरूप अब तुलनात्मक रूप में भी हिंदी पत्रकारिता में स्वतंत्र विचारधारा की कमी तथा पूर्वाग्रहों की अधिकता देखी जा सकती है। विशाल प्रतिष्ठानों से लेकर आंचलिक अखबारों तक में ऐसी घोषणा रहती है कि स्वतंत्र विचारधारा का निर्भीक अखबार लेकिन वास्तविक स्थिति इससे अलग हैं। इस प्रसंग में राष्ट्रीय स्तर के एक हिन्दी साप्ताहिक के संपादक का एक कटु कथन उल्लेखनीय है, कि आज देश में ऐसा एक भी समाचार-पत्र नहीं है जो किसी न किसी विचारधारा का समर्थन न करता हो।
हिन्दी पत्रकारिता में विकृति तब से शुरू हुई जब से विचारधाराओं के नाम पर संपादकीय झुकाव किसी मिल मालिक, किसी कार निर्माता, किसी भवन निर्माता के व्यावसायिक हितों का पर्याय बन गए और भिन्न मत वालों की बात दबाना, बिगाड़ना कुछ का संपादकीय कर्म बन गया। यह बात भारत में केवल हिंदी समाचार-पत्रों पर नहीं बल्कि अंग्रेजी तथा अन्य भारतीय भाषाओं की पत्र-पत्रिकाओं पर भी लागू होती है।
वर्तमान परिस्थितियों में आवश्यकता इस बात की है कि अपनी मर्यादा और परंपरा को ध्यान में रखते हुए पाठकों की अभिरूचि के अनुसार सामग्री प्रस्तुत करें। यह मानना होगा कि देश और विदेश में हिंदी पत्रकारिता तभी प्रखर, प्रबल तथा प्रभावी होगी, जब उनकी संपादकीय वैचारिक निष्ठाएं या विचारधारा राष्ट्रधर्म के प्रति हितबध्द होंगी। हिंदी पत्रकारिता दिवस पर मेरे सभी कलमकार साथियों को हार्दिक शुभकामनाएं।

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