वाल्मीकि रामायण से भगवान श्रीराम के जन्म समय, मुहूर्त, नक्षत्र और राशि की जानकारी प्राप्त होती है। भगवान श्रीराम का जन्म चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को कर्क लग्न और पुनर्वसु नक्षत्र में हुआ था। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्तियों में भगवान श्रीराम जैसे गुण देखे जा सकते हैं। कुण्डली में शुभ ग्रहों के मजबूत होने पर जातक अपने जीवन में ऊँचा मुकाम हासिल करता है।
धर्म- अध्यात्म डेस्क। सनातन धर्म में ज्योतिष शास्त्र का विशेष महत्व है। ज्योतिष कुण्डली देखकर व्यक्ति विशेष की भविष्यवाणी करते हैं और रोजगार, कारोबार, प्रेम, विवाह, स्वास्थ्य, आदि की जानकारी प्राप्त करते हैं। जातक के जीवन में शुभ ग्रहों के मजबूत होने पर उसे ऊँचा मुकाम प्राप्त होता है, जबकि शुभ ग्रहों के कमजोर होने पर उसे विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। ज्योतिषियों के अनुसार, कुण्डली में 27 नक्षत्र होते हैं, और इन नक्षत्रों के आधार पर जातक का भविष्य निर्धारित होता है। इसके अलावा महादशा, योग एवं ग्रहों पर भी विचार किया जाता है।
भगवान श्रीराम का जन्म पुनर्वसु नक्षत्र में हुआ था। पुनर्वसु नक्षत्र में जन्मे जातकों को ईश्वर में अगाध श्रद्धा होती है और इनका व्यवहार बाल्यावस्था से ही सौम्य और सुशील होता है। इन व्यक्तियों को भौतिक सुखों से विरक्ति होती है और वे अधर्म पथ पर चलने में रुचि नहीं रखते। पुनर्वसु नक्षत्र में जन्मे लोग विशाल हृदय वाले होते हैं और उनमें भगवान श्रीराम जैसे गुण देखने को मिलते हैं।