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365 दिन में 24 घंटे के लिए खुलने वाले मंदिर में उमड़ी श्रद्धा

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ग्वालियर में सोमवार को कार्तिक पूर्णिमा है, और यह दिन शास्त्रों के अनुसार बहुत ही शुभ माना गया है। इस दिन लोग पवित्र नदियों में स्नान करके दीपदान और नदियों को चुनरी भेंट करते हैं। साथ ही कार्तिक पूर्णिमा पर कुछ लोग भगवान शिव की पूजा करते हैं तो कुछ लोग भगवान् विष्णु की।

मान्यताओं की मानों तो आज के दिन दीपावली भी मनाई जाती है। अर्थात मान्यता है कि पूर्णिमा के दिन यानि कार्तिक पूर्णिमा के दिन की गई पूजा व्यर्थ नहीं जाती। देवताओं के साथ पवित्र नदिया व प्रकृति का आशीर्वाद हर मनुष्य को मिलता है। लेकिन आज का दिन भगवान स्वामी कार्तिकेय का भी दिन है।

इस खबर में दैनिक भास्कर आपको स्वामी कार्तिकेय से जुड़ी एक कथा बताने जा रहा हैं साथ ही यह भी बताएंगे जो मध्य प्रदेश के एकलौते कार्तिकेय स्वामी मंदिर के दर्शन भी कराएंगे जो साल में सिफ एक दिन ही भक्तों के लिए दर्शन करने खोला जाता है।

कार्तिक पूर्णिमा को भगवान शिव और माता पार्वती के बड़े बेटे कार्तिकेय के जन्म दिन के रूप में भी देश में मनाया जाता है, इस दिन मध्य प्रदेश के इकलौते और करीब 400 साल पुराने मंदिर के पट खुलते हैं और भगवान कार्तिकेय सबको दर्शन देते हैं, ग्वालियर के जीवाजीगंज में स्थित इस मंदिर पर सिर्फ मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ से ही नहीं बल्कि महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, सहित कई राज्यों से भी दर्शनार्थी दर्शन करने आते हैं।

गणेश और कार्तिकेय में लगी थी शर्त। बता दें कि कार्तिकेय स्वामी साल में केवल एक दिन ही भक्तों को दर्शन क्यों देते हैं, इसके पीछे एक ओर कथा प्रचिलित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि एक बार बाल्यावस्था में कार्तिकेय और गणेश के बीच बुद्धि और शक्ति को लेकर बहस छिड़ गई थी, इसको लेकर दोनों भगवान शिव और माता पार्वती के पास पहुँच गए थे और उनसे प्रश्न करने लगे।

शिव-पार्वती ने उन्हें बातों से समझाया लेकिन जब वह दोनों नहीं माने तो उन्होंने कहा कि तुम दोनों में जो कोई भी अपने वाहन पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा कर पहले लौटकर आएगा वो ही असली विजयी होगा। शिव पार्वती की बात सुनकर कार्तिकेय अपने मयूर पर बैठकर उड़ गए पृथ्वी की परिक्रमा करने। माता पिता की बात सुनकर बड़े बेटे कार्तिकेय अपने वाहन मयूर (मोर) पर सवार होकर पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकल गए। गणेश अपनी सवारी चूहे के साथ वहीं खड़े रहे फिर कुछ देर सोचने के बाद उन्होंने शिव- पार्वती की परिक्रमा की और वहीं बैठ गए, जब कार्तिकेय लौटकर आये और वहां गणेश को प्रसन्न मुद्रा में देखा, कारण पूछने पर शिव-पर्वती ने बताया कि गणेश ने हम दोनों की परिक्रमा कर ली और वो ही विजेता है क्योंकि शास्त्र कहता है कि माता पिता की परिक्रमा तीनों लोकों की परिक्रमा के समान है जबकि पृथ्वी तो उसका एक हिस्सा मात्र है।

कार्तिकेय नाराज हो गए थे गणेश जी की विजयी पर और खुद को श्राप दे दिया था। शिव और पार्वती की बात सुनकर कार्तिकेय नाराज हो गए और कुपित होकर उन्होंने कह दिया कि मैं कैलाश छोड़कर जा रहा हूँ। उन्होंने खुद को श्राप दे दिया कि अब से कोई भी मेरा चेहरा नहीं देखेगा, यदि स्त्री ने चेहरा देखा तो सात जन्मों तक उसे विधवा का संताप झेलना होगा और जो पुरुष मेरे दर्शन करेगा तो वह सात जन्मों तक नरक का भागीदार होगा, इतना कहकर कार्तिकेय दक्षिण दिशा की तरफ निकल गए।

देवताओं के बहुत मनाने पर कार्तिकेय ने श्राप में संशोधन किया। कार्तिकेय के इस श्राप से सिर्फ शंकर पार्वती ही नहीं देवता भी परेशान हो गए, सभी ने कार्तिकेय को मनाने और श्राप वापस लेने का निवेदन किया , बहुत मनाने पर कार्तिकेय गुफा से बाहर आये और कहा कि आप लोग इतना अनुरोध कर रहे हैं तो मैं क

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