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आत्मनिर्भर भारत में उड़ान भरता हथकरघा

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लोकल से ग्लोबल की उड़ान भर रहे हैं हथकरघा के अनेक स्वदेशी उत्पाद,करोड़ों के कारोबार से देश में स्वरोजगार की बहार
राष्ट्रीय हथकरघा दिवस पर विशेष

डॉ. केशव पाण्डेय
हथकरघा भारत की सांस्कृतिक विरासत के प्रमुख प्रतीकों में से एक है। जो आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करने में एक मजबूत कड़ी है। देशभर में हथकरघा बुनकरों की कला को सम्मानित करने और हथकरघा उद्योग को समृद्ध करने के उद्देश्य से प्रत्येक वर्ष 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाया जाता है। ताकि धरोहर की रक्षा करने और हथकरघा उत्त्पादों को बढ़ावा देने के साथ ही बुनकरों को सशक्त बनाया जा सके

—–राष्ट्रीय हथकरघा दिवस देश के सामाजिक आर्थिक विकास, बुनकरों की आय में वृद्धि तथा हथकरघा के योगदान को उजागर करने के लिए घोषित किया गया है।क्योंकि हमारे देश की हर चीज में हाथों की कला का समागम देखने को मिलता है। खाने से लेकर दीवारों की कलाकृतियों तक और पहनावे से लेकर बोली तक सभी अनूठे होते हैं। भारतीय सभ्यता में हमेशा पहनावे को बहुत महत्व दिया गया है। हथकरघा (हैंडलूम) दिवस पर बात करने से पहले यह समझने की कोशिश करते हैं, कि आखिर हैंडलूम होता क्या है?

हैंडलूम यानी हाथ से बनी हुई चीजें, जिसे बनाने के लिए मशीन का इस्तेमाल नहीं किया जाता। हैंडलूम के उत्पाद काफी प्रसिद्ध होते हैं। हैंडलूम के उत्पाद को बनाने के लिए अच्छी गुणवत्ता का इस्तेमाल किया जाता है।
हैंडलूम भारत की सांस्कृतिक विरासत का अहम हिस्सा है या कहें कि पहचान है। पहवाने से लेकर घर की सजावट तक में हैंडलूम को अब खासतौर से शामिल किया जाने लगा है, जिससे इस इंडस्ट्री में रोजगार बढ़ा है और कारीगरों की स्थिति भी सुधर रही है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस दिन को स्वदेशी आंदोलन के रूप में चुना गया था। यह दिन हमारे इतिहास का बहुत ही खास दिन माना जाता है।
यही वजह है कि आधुनिकरण के दौर में भी आज हथकरघा आजीविका का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। ख़ासकर महिलाओं के लिए, क्योंकि महिलाएं हथकरघा क्षेत्र में बुनकरों या इससे संबद्ध श्रमिकों का लगभग 70 प्रतिशत हैं।

भारत में ऐसे अनेक राज्य हैं जो हथकरघा उत्पाद के लिए पचाहन रखते हैं। आंध्र प्रदेश की कलमकारी, गुजरात की बांधनी, मध्य प्रदेश की चंदेरी, तमिलनाडू का कांजीवरम, महाराष्ट्र की पैठनी और बिहार का भागलपुरी सिल्क कुछ ऐसे हैंडलूम उत्पाद हैं, जो भारत ही नहीं, दुनिया भर में मशहूर हैं। इससे यह बात साफ है कि हैंडलूम भारत की सांस्कृतिक विरासत का एक अहम हिस्सा है। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि हथकरघा से बनी चीजें देश के हर हिस्से तक पहुंचे, ताकि बुनकर समुदाय को मेहनत का फल मिले। हैंडलूम उद्योग बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार देने के अलावा महिलाओं को आत्म निर्भर बनने का भी मौका देता है।
अब बात करते हैं आखिर कब हुई हथकरघा की शुरूआत? तो अतीत में जाने पर पाते हैं कि 1905 में लार्ड कर्ज़न ने बंगाल के विभाजन की घोषणा की, तब कोलकाता के टाउन हॉल में आयोजित महा जनसभा में 7 अगस्त 1905 को महात्मा गांधी के नेतृत्व में स्वदेशी आंदोलन की शुरूआत हुई थी। महात्मा गांधी ने हथकरघा को उद्योग बनाकर युवाओं को स्वावलंबी बनाने का सपना देखा था। एक समय था जब हथकरघा अपनी उड़ान भर रहा था। आजादी के बाद फिर यह नीचे आ गया। इसी दिन को याद करते हुए 7 अगस्त 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चैन्नई के मद्रास विश्वविद्यालय में प्रथम राष्ट्रीय हथकरघा दिवस का उद्घाटन कर इस दिन को मनाने की शुरूआत की। तब से हर साल इस दिवस को मनाया जा रहा है।
परिणामस्वरूप पिछले 7-8 साल में बुनकरों की आंखों में उम्मीद की नई चमक देखने को मिली है और आज हथकरघा को पंख लग चुके हैं। अब अनेक उत्पादों ने लोकल से ग्लोबल की उड़ान भरना शुरू कर दी है।
भारत सरकार के कपड़ा मंत्रालय द्वारा फरवरी 1983 में स्थापित किया गया राष्ट्रीय हथकरघा विकास निगम लिमिटेड सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम के रूप में कार्य कर रहा है। देश में इसके 7 क्षेत्रीय कार्यालय और 32 शाखा कार्यालयों की मदद से हथकरघा के त्वरित विकास में सहायता की जा रही है। जबकि मध्य प्रदेश में संत रविदास हस्तशिल्प एवं हथकरघा विकास निगम काम कर रहा है। बुनकरों को रोजगार और उनके उत्पादों को बाजार उपलब्ध कराने के लिए प्रदेश भर में मृगनयनी एम्पोरियम स्थापित किए गए हैं।
लोकसभा में रखी गई जानकारी के मुताबिक राष्ट्रीय हथकरघा विकास कार्यक्रम, व्यापक हथकरघा क्लस्टर विकास योजना, हथकरघा बुनकरों की व्यापक कल्याण योजना, यार्न आपूर्ति योजना के तहत 2017-18 में कुल 397.74 करोड़ रुपए आवंटित किए, जिनमें से 391.69 करोड़ रुपए खर्च किए गए, 2018-19 में 325.49 करोड़ में से 264 करोड़ इस मद में खर्च हुए। वहीं 2019-20 में 353.95 करोड़ में से 308.34 करोड़ रुपए और 2020-21 में 384.00 में से 21 जनवरी 2021 तक 203.35 करोड़ रुपये हैंडलूम क्षेत्र में खर्च किए गए।
सरकार द्वारा हथकरघा उद्योग को बढ़ावा देने के लिए अनेक योजनाएं चलाई जा रही हैं। जिनमें राष्ट्रीय हथकरघा विकास कार्यक्रम, व्यापक हथकरघा क्लस्टर विकास योजना, हथकरघा बुनकरों की व्यापक कल्याण योजना, यार्न आपूर्ति योजना, राष्ट्रीय आवास विकास कार्यक्रम शामिल हैं। बुनकरों को अलग-अलग योजना के तहत आर्थिक सहायता भी मुहैया कराई जा रही हैं। सरकार ने बुनकारों और उनके उत्पाद को सरकारी ई-मार्केटप्लेस (जेम) पर पंजीकृत करने के लिए कदम उठाये हैं, ताकि वे केंद्रीय सरकार के विभागों को हथकरघा उत्पादों की सीधी आपूर्ति कर सकें। जेम पर अब तक 66 लाख 90 हजार 278 लाख विक्रेता और सेवा प्रदाता शामिल हैं। उत्पादों के मार्केटिंग क्षमता को बढ़ाने देने और बेहतर आय सुनिश्चित करने के लिए कई राज्यों में 125 हथकरघा कंपनियों का गठन किया गया है। आज की स्थिति में 34 लाख 87 हजार 13 उत्पाद मौजूद हैं। जबकि 4 लाख 76 हजार 464 करोड़ का लेनदेन हो चुका है। ऐसे में कहना मुनासिब होगा कि आज लोकल से ग्लोबल होकर भारतीय हथकरघा आत्मनिर्भर भारत में ऊंची उड़ान भर रहा है।
(लेखक सांध्य समाचार के प्रधान संपादक हैं)

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