यदि आप डायबिटीज के मरीज हैं तो तेज गर्मी आपके लिए जानलेवा साबित हो सकती है। अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ पेंसिलवेनिया में हुए एक अध्ययन के मुताबिक ज्यादा गर्मी बढ़ने से डायबिटीज के मरीजों को सांस लेने में दिक्कत हो सकती है या दिल की बीमारी हो सकती है। इसके अलावा ज्यादा सर्दी भी जान की दुश्मन बन सकती है।
नई दिल्ली, विवेक तिवारी। तेजी से हो रहे जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान की अधिकता से गर्मी लगातार बढ़ रही है। भीषण गर्मी और लू से आम लोगों की मुश्किलें बढ़ गई हैं। लेकिन आप अगर डायबिटीज (टाइप 2) के मरीज हैं तो बढ़ती गर्मी आपके लिए जानलेवा भी हो सकती है। अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ पेंसिलवेनिया में हुए एक अध्ययन के मुताबिक गर्मी बढ़ने से डायबिटीज के मरीजों को सांस लेने में दिक्कत हो सकती है, दिल की बीमारी हो सकती है या दिमाग की बीमारी, जैसे ब्रेन स्ट्रोक भी हो सकता है। ये अध्ययन अलग अलग स्थितियों और स्थानों पर रहने वाले लगभग 30 लाख डायबिटीज के मरीजों पर किया गया है।
— सेहत पर भारी पड़ती गर्मी का अध्ययन
सेहत पर बढ़ती गर्मी के असर के अध्ययन के लिए अमेरिका स्थित एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने ऐंडी नाम का रोबोट बनाया है। गर्मी बढ़ने पर इस रोबोट को पसीना आता है। ये सांस भी लेता है और ठंड बढ़ने पर उसे सर्दी भी लगती है। इस अध्ययन में शामिल वैज्ञानिक अंकित जोशी कहते हैं कि हम अलग-अलग बॉडी मास इंडेक्स, उम्र और मेडिकल कंडीशन के आधार पर भी रोबोट के मॉडल बना रहे हैं। नजीर के तौर पर डायबिटीज मरीजों के शरीर पर गर्मी का असर सामान्य लोगों की तुलना में अलग होता है। ज्यादा गर्मी होने पर ऐसे लोगों की सेहत किस तरह प्रभावित होती है, इस पर भी अध्ययन किया जा रहा है।
— जलवायु परिवर्तन है मुख्य कारण
यूनिवर्सिटी ऑफ पेंसिलवेनिया में जलवायु परिवर्तन के चलते बढ़ती गर्मी से डायबिटीज (टाइप 2) के मरीजों पर किए जा रहे अध्ययन में शामिल वैज्ञानिक चार्ल्स लियोनार्ड, सीन हेनेसी और पेरेलमैन स्कूल ऑफ मेडिसिन के वैज्ञानिक केसी बोगर ने पाया कि बेहद गर्मी या ठंड जैसे बदलावों के चलते डायबिटीज (टाइप 2) मरीजों की मुश्किल काफी बढ़ जाती है। मौसम में बदलाव के साथ ही इन मरीजों में हाइपोग्लाइसीमिया (लो ब्लड शुगर), डायबिटीज केटोएसिडोसिस (खून का ज्यादा एसिडिक होना), और अचानक कार्डियक अरेस्ट या दिल की धड़कन बहुत तेज होने जैसी बीमारियां सामने आई हैं। अध्ययन के मुताबिक 38 डिग्री से ज्यादा या 10 डिग्री से कम तापमान होने पर डायबिटीज (टाइप 2) मरीजों की मुश्किल ज्यादा बढ़ जाती है।
— नुकसान पहुंचाता है ज्यादा तापमान
ज्यादा गर्मी होने पर रक्त वाहिकाओं और नसों को नुकसान पहुंचता है। डायबिटीज पसीने के जरिए गर्मी को दूर करने तथा शरीर को ठंडा रखने की क्षमता को कम कर देता है। ज्यादा गर्मी से मरीजों में दिल के ठीक से काम न करने का खतरा बढ़ जाता है। चार्ल्स लियोनार्ड के मुताबिक, गर्मी के तनाव से लिवर के रक्त प्रवाह में कमी आ सकती है। डायबिटीज के मरीजों में गर्म और ठंडे दोनों मौसम में रक्त में ग्लूकोज की स्थिर मात्रा को बनाए रखना मुश्किल हो जाता हैं।
जानिए क्या कहते हैं एक्सपर्ट
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के स्कूल ऑफ बायो टेक्नोलॉजी के प्रोफेसर डॉ. रूपेश चतुर्वेदी कहते हैं कि अत्याधिक गर्मी या सर्दी उन सभी मरीजों की मुश्किल बढ़ा देती है जिन्हें कार्डियो वस्कुलर मेटाबॉलिक डिजीज होती है। ज्यादा गर्मी होने पर डायबिटीज के मरीजों की सेहत पर सीधे तौर पर असर पड़ता है। वहीं इम्यूनिटी कम होने के कारण उनमें संक्रमण का भी खतरा बना रहता है। ज्यादा गर्मी या सर्दी में हाइपरटेंशन के मरीजों को भी काफी सावधान रहने की जरूरत होती है।
दिल्ली मेडिकल काउंसिल की साइंटिफिक कमेटी के अध्यक्ष डॉ. नरेंद्र सैनी कहते हैं कि तेज गर्मी या ज्यादा सर्दी में डायबिटीज के मरीज को काफी सावधान रहने की जरूरत है। दरअसल, डायबिटीज के मरीज में इंसुलिन या तो कम बनता है या नहीं बनता है। इंसुलिन शरीर में ग्लूकोज को नियंत्रित करता है। जब शरीर को जरूरत होती है, तो इंसुलिन लिवर से ग्लूकोज निकाल कर शरीर को देता है और शरीर में ग्लूकोज ज्यादा होने पर उसे लिवर में स्टोर कर देता है। लेकिन डायबिटीज के मरीज को गर्मी ज्यादा होने पर पसीना ज्यादा आता है और ग्लूकोज शरीर से निकल जाता है। ऐसे में उन्हें खूब पानी पीना चाहिए। बहुत से डायबिटीज के मरीज हाइपोग्लाइसीमिया से मर जाते हैं। उनके शरीर में शुगर बेहद कम हो जाता है। वहीं शुगर ज्यादा होने पर हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है।
— गर्मी में पीना चाहिए ज्यादा पानी
गर्मी के दिनों में डायबिटीज के मरीजों को ज्यादा पानी पीना चाहिए। वहीं जूस या शरबत पीने से बचना चाहिए। गर्मियों में भूख भी कम लगती है। जबकि डायबिटीज के मरीजों के लिए नियमित तौर पर कुछ न कुछ खाते रहना भी जरूरी है।
— बढ़ती गर्मी के हैं बड़े नुकसान
नेचर जनरल में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में ग्लोबल वॉर्मिंग की मौजूदा स्थिति के अनुसार सालाना 100 बिलियन घंटों का नुकसान होता है। रिपोर्ट में वर्किंग घंटों का आकलन दिन में 12 घंटों के आधार पर किया गया है। अध्ययन में इसे सुबह सात बजे से लेकर शाम सात बजे तक माना गया है। निकोलस स्कूल ऑफ द इंवायरनमेंट, ड्यूक यूनिवर्सिटी के ल्यूक ए पार्संस ने ई-मेल के माध्यम से बताया कि भारत का लेबर सेक्टर काफी बड़ा है। ऐसे में इसका घाटा भी अधिक होगा। रिपोर्ट के मुताबिक अगर आने वाले समय में तापमान में दो डिग्री का इजाफा होता है तो काम की क्षति दोगुनी यानी 200 बिलियन घंटे सालाना हो जाएगी।