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प्रेस की स्वतंत्रता पर पहरा, लोकतंत्र के लिए संकट गहरा

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पत्रकारिता और पत्रकारों के अधिकारों के लिए लोकतंत्र की स्थापना की गई। जो मूल्यों को फिर से स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है। सरकारों को प्रेस की स्वतंत्रता और सम्मान के साथ ही पत्रकारों को सुरक्षित रखने के लिए हर संभव मदद करनी चाहिए। क्योंकि आज मीडिया का माहौल जोखिमभरा और हिंसक हो गया है। रिपोर्ट के अनुसार हाल के महीनों में देश के मीडिया के लिए माहौल अनुकूल नहीं रहा है। मई 2022 से मार्च 2023 के बीच हमलों की संख्या 63 प्रतिशत बढ़कर 140 हो गई, जो 2021-22 में 86 थी। ऐसी स्थिति में पत्रकार की सुरक्षा और प्रेस की स्वतंत्रता के लिए खतरा मंडरा रहा है। आइये जानते विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर प्रेस की स्वतंत्रता और मौजूदा परिवेश में पत्रकारों के हालात।

विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर विषेश @ डॉ. केशव पाण्डेय
तीन मई को दुनियाभर में विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है। प्रेस की आजादी के लिए पहली बार साल 1991 में अफ्रीका के पत्रकारों ने मुहिम छेड़ी थी। इन पत्रकारों ने तीन मई को प्रेस की आजादी के सिद्धांतों को लेकर बयान जारी किया था। जिसे डिक्लेरेशन ऑफ विंडहोक के नाम से भी जाना जाता है। इसके ठीक दो साल बाद 1993 में संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने पहली बार विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाने का फैसला किया था। इस बार इसकी 30वीं वर्शगांठ है।
यह दिन प्रेस की स्वतंत्रता के सिद्धांत, प्रेस की स्वतंत्रता का मूल्यांकन, प्रेस की स्वतंत्रता पर बाहरी तत्वों के हमले से बचाव और प्रेस की सेवा करते हुए दिवंगत हुए पत्रकारों को श्रृद्धाजंलि देने का दिन है। यूनेस्को द्वारा 1997 से हर साल विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर गिलेरमो कानो वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम पुरस्कार भी दिया जाता है। यह पुरस्कार उस पत्रकार अथवा संस्थान को दिया जाता है जिसने प्रेस की स्वतंत्रता के लिए उल्लेखनीय कार्य किया हो।
मौजूदा परिवेश में दुनिया भर में स्वतंत्र प्रेस और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्राप्त करने की दिशा में बदलाव दिखा है। अनेक देशों में स्वतंत्र मीडिया के प्रसार और डिजिटल तकनीक के उद्य ने सूचना के मुक्त प्रवाह को सक्षम बनाया है। हालाँकि, मीडिया की स्वतंत्रता, पत्रकारों की सुरक्षा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगातार हमले हो रहे हैं, जो अन्य मानवाधिकारों की पूर्ति को प्रभावित करते हैं।
यही वजह है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय कई संकटों का सामना करता है। संघर्ष और हिंसा, निरंतर सामाजिक-आर्थिक असमानताएं प्रवासन, पर्यावरणीय संकट और दुनिया भर के लोगों के स्वास्थ्य और भलाई के लिए चुनौतियां हैं। साथ ही, लोकतंत्र, कानून के शासन और मानवाधिकारों को रेखांकित करने वाली संस्थाओं पर गंभीर प्रभाव के साथ ऑनलाइन और ऑफलाइन भ्रामक खबरों और गलत सूचनाओं का प्रसार होता है।
इन महत्वपूर्ण स्थितियों और खतरों का मुकाबला करने के लिए ही प्रेस की स्वतंत्रता, पत्रकारों की सुरक्षा और सूचनाओं तक पहुंच को केंद्र में रखा गया है। दुनियाभर में पत्रकारों की सुरक्षा पर नजर रखने वाली संस्था (रिपोर्टर विदआउट बॉर्डर) के महासचिव क्रिस्टोफ डेलोएर ने कहा कि कोरना महामारी ने दुनियाभर की मीडिया पर नकारात्मक प्रभाव डाला। चीन, ईरान और इराक समेत कई ऐसे देश हैं, जहां की मीडिया ने सरकार के दबाव मे सही जानकारी नहीं दी। इराक में कोरोना के आधिकारिक आंकड़ों पर सवाल उठाने वाली स्टोरी प्रकाशित करने पर न्यूज एजेंसी रॉयटर्स का लाइसेंस तीन महीने के लिए रद्द कर दिया गया। प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में चीन 177, इराक 162, भारत 150 और हंगरी 89वें स्थान पर हैं।
भारत में पत्रकारों पर हमलों की खबर दिन-प्रतिदिन सुनने को मिलती रहती हैं। इन्वेस्टीगेट रिपोर्टिंग की जांच के अनुसार भारत में स्थिति ख़राब होती नजर आ रही है। पत्रकारिता के लिए सबसे खराब देश होने के लिए भारत का 136वां स्थान है। ऐसे में प्रेस स्वतंत्रता दिवस को अपने नागरिकों के बीच प्रेस की स्वतंत्रता के बारे में जागरूकता बढ़ाना अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारत में प्रेस स्वतंत्रता दिवस खासतौर पर मीडिया पेशेवरों को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है। जो पत्रकार के फ़र्ज़ को निभाने के लिए अपने जीवन को खतरे में डाल देते हैं। प्रेस की आजादी और समाचारों को लोगों तक पहुंचाकर, सशक्त हो रहे मीडियाकर्मियों का व्यापक विकास करना इसका उद्देश्य है। इस दिवस पर सभी पत्रकार अपना काम निर्भय होकर करने की शपथ लेते हैं।
लेकिन देखा गया है कि पत्रकारों में आत्मविश्वास कमी के कारण भी कभी-कभी उन्हें हिंसा या असुरक्षा का षिकार होना पड़ता है। अगर पत्रकार खुद पर निर्भर हो तो बोलने में जरा भी नहीं कतराता और जो कतराता है वो पत्रकार की श्रेणी में आने के लायक नहीं होता है। प्रेस और मीडिया हमारे आस-पास होने वाली घटनाओं से हमें अवगत तो कराते हैं, लेकिन जिन बातों के लिए जागरूक करना होता है वह नहीं करते। ऐसे में पत्रकारिता की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े होने लगते हैं।
अर्जेंटीना की विश्व प्रेस स्वतंत्रता समिति इंटरनेशनल फ्रीडम ऑफ़ एक्सप्रेशन एक्सचेंज की सदस्य है। जो प्रेस स्वतंत्रता, मानव अधिकार विशेषज्ञों, वैश्विक सलाहकारों और पत्रकारों के लिए कई अन्य संगठनों के साथ मिलकर कार्य करती है।
कारण स्पष्ट है कि आए दिन दुनियाभर से पत्रकारों पर हुए उत्पीड़न की खबरें आती रहती हैं। पत्रकारिता एक जोखिमभरा काम जो है। पत्रकारों पर हमला होना नई बात नहीं है, सऊदी अरब के जमाल खगोशी हों या भारत की गौरी लंकेश या फिर भिंड का पत्रकार पंडित। समय-समय पर पत्रकारों पर हमले या फिर उनकी हत्या की खबर सामने आ ही जाती हैं। ऐसे में पत्रकारों पर हो रहे उत्पीड़न और उनकी आवाज को अलग-अलग ताकतों द्वारा दबाया नहीं जाए इसीलिए भी विश्व प्रेस आजादी दिवस मनाया जाता है। प्रेस की स्वतंत्रता का मूल्यांकन करना, प्रेस की स्वतंत्रता पर बाह्य तत्वों के हमले से बचाव करना एवं प्रेस की स्वतंत्रता के लिए शहीद हुए संवाददाओं की यादों को सहेजना है। इस दिवस की सार्थकता को सिद्ध करता है।
बावजूद इसके यदि समय रहते नहीं चेते तो फिर यह स्वस्थ लोकतंत्र के लिए खतरनाक साबित हो सकता है क्योंकि प्रेस की स्वतंत्रता पर पहरा, लोकतंत्र के लिए है संकट गहरा।

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