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सामाजिक समरसता का प्रतीक बने एक समाज

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भारत अनेकता में एकता का देश है। जितनी विविधताएं हैं उतनी ही असमानता हैं। ऐसे में समाज में सामंजस्य लाना, हर व्यक्ति को उसकी गरिमा के अनुरूप न्याय प्रदान करना हमेशा से ही समाज की एक बड़ी चुनौती रही है। कारण, किसी भी सभ्य समाज के लिए सामाजिक न्याय अहम् होता है। सामाजिक न्याय का सीधा सा अर्थ है लिंग, धर्म, आयु और संस्कृति की भावना को मिटाकर समान समाज की स्थापना करना। जब समाज में असमानता और भेदभाव फैलने लगता है तो लोगों के नैतिक और मानवाधिकारों की रक्षा करने के लिए सामाजिक न्याय की मांग तेज हो जाती है। समाज में हर वर्ग को न्याय मिले इसी भावना से प्रति वर्ष 20 फरवरी को विश्व सामाजिक न्याय दिवस मनाया जाता है। आइए, जानते हैं इस दिवस का महत्व और प्रभाव।

विश्व सामाजिक न्याय दिवस आज
डॉ.केशव पाण्डेय
दुनिया भर में लोगों के बीच कई तरह के भेदभाव पैदा हो रहे हैं, जो कि आपसी दूरी का कारण बन रहे हैं। इन भेदभाव के कारण लोगों को अनेक तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। दुनिया में इस तरह की बुराइयों को खत्म करने के लिए हर वर्ष ‘विश्व सामाजिक न्याय दिवस’ मनाया जाता है।


सबसे पहले जानते हैं कि आखिर इसकी शुरुआत हुई कैसे? तो आपको बता दें, कि साल 1995 में कोपेनहेगन, डेनमार्क में सोशल डवलपमेंट के लिए विश्व शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया था। इस शिखर सम्मेलन में 100 से अधिक राजनीतिक नेताओं ने गरीबी, पूर्ण रोजगार के साथ-साथ लोगों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने का लक्ष्य रखा था। साथ ही समाज के लिए कार्य करने के लक्ष्य को हासिल करने का उद्देश्य भी इस आयोजन में रखा गया था। 26 नवंबर 2007 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने कोपेनहेगन में हुए इस शिखर सम्मेलन के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए इस दिन को मनाने की घोषणा की थी। 2009 में पहली बार पूरी दुनिया में इसे मनाया गया था और इस बार यह 15वां दिवस है। ये दिवस मुख्य तौर से नस्ल, वर्ग, लिंग, धर्म, संस्कृति, भेदभाव, बेरोजगारी से जुड़ी अनेक समस्याओं को हल करने के उद्द्ेश्य से मनाया जाता। इस वर्ष न्याय दिवस का विषय “वैश्विक एकजुटता को मजबूत करने और बाधाओं पर काबू पाना एवं सामाजिक न्याय के अवसरों को उजागर करना है“।
हमारी सरकार भी यह स्वीकार करती हैं कि सभी के लिए एक समाज सामाजिक न्याय और सभी मानवाधिकारों और मौलिक स्वतंत्रता के सम्मान पर आधारित होना चाहिए। इस दिन के उद्देश्य के मुताबिक गरीबी, लैंगिक असमानता आदि के मुद्दों सहित सामाजिक न्याय को बढ़ावा देन की आवश्यकता है।
विश्व सामाजिक न्याय दिवस के उद्देश्यों को पूरा करने के मकसद से संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय श्रम कार्यालय एक साथ मिलकर कार्य कर रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय श्रम कार्यालय के मुताबिक इस वक्त करीब 28 करोड़ लोग दूसरे देशों में जाकर बसे हुए हैं, जिनमें से लगभग 15 करोड़ प्रवासी लोग कार्य कर रहे हैं। दूसरे देश में कार्य कर रहे इन 15 करोड़ लोगों के लिए ही इस साल का विश्व सामाजिक न्याय का विषय रखा गया है।
भारत सरकार ने कई ऐसे आयोगों का गठन किया है जो कि सामाजिक न्याय के हितों के लिए कार्य कर रहे हैं। सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा कई योजनाओं की मदद से भी लोगों की सहायता की जाती है। वहीं राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से लेकर राष्ट्रीय महिला एवं बाल विकास आयोग जैसे सरकारी संगठन दिन-रात हमारे समाज से भेदभाव, बेरोजगारी और बच्चों की सुरक्षा के लिए कार्य कर रहे हैं।
देश के संविधान को बनाते समय भी सामाजिक न्याय का खासा ध्यान रखा गया था। यही वजह है कि हमारे संविधान में कई ऐसे प्रावधान मौजूद हैं, जो कि सामाजिक न्याय को सुनिश्चित करने के लिए बनाए गए हैं। भारत सरकार आज भी सामाजिक समरसता के लिए संयुक्त राष्ट्र के साथ कदम से कदम मिलाकर अनेक अनुकरणीय कार्य कर रही है। क्योंकि देश में कई तरह की जाति के लोग मौजूद हैं, इसके अलावा कई ऐसी प्रथाएं हैं जो की सामाजिक न्याय के लिए खतरा हैं और इन्हीं चीजों से लड़ने के लिए भारत ने कई महत्वपूर्ण कार्य भी किए हैं।
सरकारों की निरंतर यही कोशिशें हैं कि कैसे भी बुराईयों को खत्म किया जा सके। बावजूद इसके अभी भी देश में इन समस्याओं से पूरी तरह से छुटकारा नहीं मिल पा रहा है। उम्मीद है कि आने वाले वर्षों में सरकारें अपने इन लक्ष्यों में कामयाब हो जाएंगी। विश्व सामाजिक न्याय दिवस बढ़ती असमानताओ पर बातचीत को बढ़ावा देने और सदस्य देशों, युवाओं, सामाजिक भागीदारों, संयुक्त राष्ट्र संगठनों और अन्य हितधारको ंके साथ सामाजिक अनुबंध को मजबूत करने का अवसर जो प्रदान करता है। इसके लिए यह भी जरूरी है कि सभी के लिए एक समाज की परिकल्पना साकार हो क्योंकि एक समाज ही सामाजिक समरसता का प्रतीक बनेगा।
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