✨समाज निर्माण के लिए कृष्ण- सुदामा का भाव रखकर करनी होगी साधना
📍 ग्वालियर:
जीवाजी विश्वविद्यालय के कुलपति डा. राजकुमार आचार्य ने कहा कि मानव जीवन में हम कितना भी पद, प्रतिष्ठा, धन वैभव का अहंकार कर लें, हमें मिलता वहीं है जिसके हम भागी होते हैं। उन्होंने कहा कि प्रकृति परिवर्तनशील है। यदि हम अपने कर्तव्यों के प्रति सचेत रहते हैं तो सफलता अवश्य मिलती है। डॉ. आचार्य आज यहां स्थित आईकॉम सेंटर पर उनके आतिथ्य में आयोजित सम्मान कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। डॉ. आचार्य ने कहा कि सफलता हमें हमारे चश्मे से नहीं देखना चाहिए। कभी-कभी ऐसा होता है कि हम साधना किसी और की कर रहे होते हैं और सफलता किसी और क्षेत्र में मिल जाती है। लेकिन नियति हमें साधना या यूं कहें कि मेहनत का सुफल अवश्य देती है। वर्तमान परिवेश में समाज में हो रहे नैतिक मूल्यों के पतन को लेकर उन्होंने आह्वान किया कि हमें कृष्ण-सुदामा जैसा भाव रखकर साधना करनी होगी तभी सफलता मिलेगी। ऐसी सफलता अवश्य ही समाज निर्माण में उपयोगी साबित होगी।
🌱 हम अपना आंगन बुहार लें, देश अपने आप साफ व स्वच्छ हो जाएगा
डॉ. आचार्य ने कहा कि प्रकृति परिवर्तनशील है और बदलाव को मैं इस शर्त पर लेता हूं कि कुएं का पानी बाल्टी में लें तो पानी वैसा ही आता है जैसा कुएं में था। मेरा मानना है कि समाज जब श्रेष्ठ तत्व में रहता है तो हर संस्थान में श्रेष्ठ रूप मिलेगा। वैसा नहीं है तो कुएं के पानी को बाहर निकालकर जब शुद्ध कर लिया जाएगा तो पानी भी उतना ही शुद्ध होगा जितना कि बाहर निकाला गया। कहने का आशय यह है कि हमने अगर अपना आंगन बुहार लिया तो समझिए कि देश स्वच्छ व साफ हो जाएगा।
🌟 विचार शक्ति के शक्तिपुंज हैं डॉ आचार्य: डॉ. केशव पाण्डेय
इससे पहले शहर के वरिष्ठ समाजसेवी डॉ केशव पाण्डेय ने विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ राजकुमार आचार्य को विचार शक्ति का शक्तिपुंज बताया। डॉ आचार्य के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए डॉ पाण्डेय ने कहा कि वे न केवल शिक्षा जगत में ही अपितु समाज जीवन के हर क्षेत्र में समाज निर्माण के कार्य में अग्रसर रहते हैं। कई विश्वविद्यालयों महाविद्यालयों के कुलपति का दायित्व संभालने के बावजूद जल संरक्षण के क्षेत्र में समाज व लोगों को प्रकृति संरक्षण के लिए अलख जगा रहे हैं। शिक्षा के ऐसे अग्रदूत का जीवाजी विश्वविद्यालय में कुलपति बनकर आना निश्चित रूप से न केपल विश्वविद्यलय का बल्कि छात्रों का भी हित होगा।
🎓 विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा अच्छे प्रोफेसरों से होती है
डॉ. पाण्डेय ने कहा कि उन्होंने महज 22 साल की उम्र में ही विश्वविद्यालय कार्यपरिषद का चुनाव जीता। विश्वविद्यालय व छात्रों के हित में अनेक कार्य सम्पन्न हुए। जिसके चलते मैं दूसरी फिर तीसरी बार चुनाव जीतता गया। डॉ. पाण्डेय ने अपने कार्य अनुभवों को साक्षी करते हुए कहा कि उस वक्त के डॉ. हर्षस्वरूप, डॉ. केके तिवारी, डॉ. गोविंद नारायण टंडन जैसे कुलपति कहा करते थे कि विश्वविद्यालय दीवारों, पेड़-पौधे या साजो-सामान से अच्छा नहीं बनता। अच्छा तो तब बनता है जब वहां के प्रोफेसर गुणवान हों। आचार्य जी उसी कड़ी के व्यक्तित्व हैं। वे निश्चित रूप से विश्वविद्यालय को सही दिशा में आगे ले जाएंगे।
🌺 संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने किया सम्मानित, भाव-विभोर हुए डॉ. आचार्य
इससे पहले शहर के कई नामचीन संस्थानों के प्रतिनिधियों ने डॉ. आचार्य का पुष्पगुच्छ एवं शॉल ओढ़ाकर सम्मान किया। कार्यक्रम का संचालन महेश मुदगल ने किया। इस अवसर पर बड़ी संख्या शहर के प्रबुद्धजन एवं गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।