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एम्स में गामा थेरेपी से होगा आंखों के कैंसर का प्रभावी इलाज

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रेटिनोब्लास्टोमा से ग्रस्त बच्चों के लिए नई उम्मीद, अब बिना चीरे के संभव है उपचार

नई दिल्ली।
छोटे बच्चों में पाई जाने वाली दुर्लभ आंखों की कैंसर बीमारी रेटिनोब्लास्टोमा के इलाज में अब एक नई उम्मीद की किरण दिखाई दी है। देश के शीर्ष चिकित्सा संस्थान अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली ने इस गंभीर बीमारी के इलाज के लिए गामा नाइफ थेरेपी का सफल प्रयोग शुरू कर दिया है।

दो बच्चों की बिना चीरे के सफल सर्जरी

एम्स के न्यूरोसर्जन डॉ. दीपक अग्रवाल ने जानकारी दी कि हाल ही में दो बच्चों का इलाज गामा नाइफ तकनीक से किया गया। इस तकनीक में किसी प्रकार का चीरा या ऑपरेशन नहीं होता। विकिरण के माध्यम से सीधे कैंसरग्रस्त कोशिकाओं को नष्ट किया जाता है। इससे न केवल संक्रमण और रक्तस्राव का खतरा कम होता है, बल्कि बच्चों को दर्द रहित और सुरक्षित इलाज मिल पाता है।

क्या है रेटिनोब्लास्टोमा?

डॉ. भावना चावला ने बताया कि रेटिनोब्लास्टोमा एक गंभीर लेकिन इलाज योग्य नेत्र कैंसर है, जो मुख्य रूप से 3 से 5 वर्ष तक के बच्चों में देखा जाता है। इसके प्रमुख लक्षणों में:

  • पुतली में सफेद चमक (ल्यूकोकोरिया),

  • आंखों का टेढ़ापन (भेंगापन),

  • आंखों में लाली या लगातार दर्द शामिल हैं।

एम्स में हर साल 350 से अधिक बच्चे इस बीमारी के इलाज के लिए लाए जाते हैं, जो इसके बढ़ते मामलों की गंभीरता को दर्शाता है।

बीमारी के बढ़ने पर क्या होता है?

डॉ. चावला ने आगे बताया कि यदि समय रहते इलाज न हो तो यह कैंसर आंख से निकलकर मस्तिष्क तक फैल सकता है, जिससे बच्चे को सिरदर्द, उल्टी, भूख न लगना जैसे लक्षण दिखने लगते हैं। ऐसे मामलों में इलाज जटिल हो जाता है।

उपचार और सफलता दर

अगर यह बीमारी केवल आंख तक सीमित हो, तो सर्जरी, कीमोथेरेपी और रेडिएशन थेरेपी से इसका इलाज संभव है और सफलता की दर 100% तक जाती है। हालांकि कई मामलों में बच्चे की आंख को निकालना भी पड़ता है।


रेटिनोब्लास्टोमा का कारण क्या है?

एम्स की आनुवंशिकी विशेषज्ञ डॉ. रीमा दादा ने बताया कि रेटिनोब्लास्टोमा दो प्रकार का होता है:

  1. अनुवांशिक रेटिनोब्लास्टोमा:
    यह पीढ़ी दर पीढ़ी चलता है। पिता के शुक्राणु की गुणवत्ता में कमी इसका मुख्य कारण है, जो शराब, तंबाकू और मोबाइल फोन के अधिक इस्तेमाल से बिगड़ सकती है।

  2. गैर-अनुवांशिक कारण:
    बड़ी उम्र (35-40 वर्ष) में विवाह करना, प्रदूषण और जीवनशैली की खराब आदतें इसकी बड़ी वजह बन रही हैं।


जागरूकता ही है बचाव

एम्स में आयोजित रेटिनोब्लास्टोमा जागरूकता माह के तहत हुए सेमिनार में डॉ. शैलेश गायकवाड़, डॉ. रीमा दादा, डॉ. रचना सेठ सहित कई विशेषज्ञों ने भाग लिया। सभी ने एक स्वर में कहा कि समय पर जांच, सही इलाज और जनजागरूकता से इस बीमारी को हराया जा सकता है।


निष्कर्ष:
गामा नाइफ थेरेपी जैसी आधुनिक तकनीकें अब बच्चों की आंखों की रोशनी बचाने में एक क्रांतिकारी कदम बन रही हैं। एम्स द्वारा किया गया यह प्रयास देशभर में रेटिनोब्लास्टोमा से जूझ रहे परिवारों के लिए एक बड़ी राहत है।

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