मंदिर पर सुरक्षा ऐसी कि परिंदा भी पर न मार सके, कड़ी सुरक्षा के बीच बैंक से लाए गए गहने, हजारों लोगों ने किए दर्शन
ग्वालियर। भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव जन्माष्टमी की शहर में धूम मची हुई है। मंदिरों पर आकर्षक साज-सज्जा की गई हैं। धार्मिक व सांस्कृतिक कार्यक्रम हो रहे हैं। लोगों को रात 12 बजे का बेसब्री से इंतजार है जब कान्हा के जन्म की खुशियां मनाई जाएगी। लेकिन मंदिरों में सुबह से ही श्रद्धालुओं की लंबी कतार लगी हुई हैं जो खत्म होने का नाम नहीं ले रही हैं।
अब बात करते हैं ऐसे मंदिर कि जहां राधा-कृष्ण का करीब 100 करोड़ रुपए के बेशकीमती आभूषणों से श्रृंगार किया गया है। जी, हॉ यह मंदिर है फूलबाग स्थित प्राचीन गोपाल मंदिर।

जहां राधा-कृष्ण का सिंधिया रियासत के समय बने 100 करोड़ के हीरा, नीलम, पन्ना, माणिक और पुखराज जैसे बेशकीमती रत्नों से जड़े आभूषणों से श्रृंगार किया गया। सुबह इन गहनों को कड़ी सुरक्षा के बीच बैंक के लॉकर से निकालकर मंदिर तक पहुंचाया गया था। इससे पहले राधा कृष्ण की मूर्ति का दूध, दही और जल से अभिषेक किया गया। राधा-कृष्ण को गहनों को पहनाकर आरती उतारी गई और आमजन के दर्शनों के लिए मंदिर के पट खोल दिए गए।
साल में एक बार करोड़ों के गहने पहनने वाले राधा कृष्ण भगवान के दर्शनों के लिए लोगों में गजब का उत्साह बना हुआ है। यही वजह है कि सुबह से मंदिर पर हजारों लोगों की भीड़ उमड़ रही है। मंदिर की सुरक्षा की दृष्टि से भारी बल तैनात किया गया है।
102 साल सिंधिया परिवार ने कराया निर्माण
सर्व धर्म सद्भाव का प्रतीक माने जाने वाले फूलबाग जोन में 1921 में गोपाल मंदिर की स्थापना हुई। ग्वालियर रियासत के तत्कालीन शासक माधवराव सिंधिया प्रथम ने इस मंदिर का निर्माण कराया। उन्होंने भगवान की पूजा के लिए चांदी के बर्तन और उनके श्रृंगार के लिए रत्न जड़ित सोने के आभूषण बनवाए थे। इनमें राधा-कृष्ण के 55 पन्ना जड़ित सात लड़ी का हार, हीरे आर माणिक से सजी सोने की बांसुरी, सोने की नथ, जंजीर और चांदी के पूजा के बर्तन हैं। साल में एक बार ही जन्माष्टमी के दिन इन आभूषणों से राधा-कृष्ण का शृंगार किया जाता है। भगवान के इस भव्य स्वरूप को देखने के लिए भक्त सालभर का इंतजार करते हैं।

निगम करता है मंदिर का प्रबंधन
इस मंदिर का प्रबंधन नगर निगम द्वारा किया जाता है। साथ ही यह बेशकीमती आभूषण अब नगर निगम की धरोहर है। इनके रख-रखाव के साथ ही बैंक में जमा करने और निकालने का काम भी निगम प्रशासन की जिम्मेदारी है। जन्माष्टमी के दूसरे दि नही कड़ी सुरक्षा के बीच इन आभूषणों को बैंक पहुंचाकर उन्हें जमा कर दिया जाता है। ।
17 वर्षों हो रहा है श्रृंगार
सिंधिया रियासत के दौरान इन आभूषणों को भगवान को पहनाया जाता था। लेकिन आजादी के बाद इन्हें बैंक में जमा कर दिया गया। करीब 50 साल तक जिम्मेदारों को इनकी सुध ही नहीं रही। 2007 में अचानक मामला खुलने पर नगर निगम की देखरेख में आए। तब से हर वर्ष जन्माष्टमी पर इन्हें भगवान को पहनाया जाने लगा। 17 वर्ष से लोग भगवान को रत्न जड़ित आभूषणों में देख मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।