मध्यप्रदेश की 10 निजी विश्वविद्यालयों को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने डिफॉल्टर घोषित कर दिया है। इनमें भोपाल और जबलपुर की दो-दो, जबकि इंदौर की एक यूनिवर्सिटी शामिल है। छात्रों से जुड़ी जानकारी छुपाने और शिक्षण कार्य में पारदर्शिता की कमी के चलते यह कड़ी कार्रवाई की गई है। इससे हजारों छात्रों की डिग्री और भविष्य को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं।
क्यों हुई कार्रवाई?
यूजीसी ने हाल ही में डिफॉल्टर यूनिवर्सिटीज़ की सूची जारी की। इन संस्थानों पर आरोप है कि उन्होंने यूजीसी अधिनियम के तहत अनिवार्य जानकारी प्रस्तुत नहीं की और न ही अपनी वेबसाइट पर पब्लिक सेल्फ-डिस्क्लोजर से जुड़ी जरूरी सूचनाएं उपलब्ध कराईं।
यूजीसी के कई बार मेल भेजने और नोटिस देने के बाद भी विश्वविद्यालयों ने लापरवाही बरती। नतीजा यह हुआ कि छात्रों और अभिभावकों को पाठ्यक्रम, फीस संरचना और प्रवेश नियमों की पारदर्शी जानकारी नहीं मिल पा रही थी।
छात्रों के लिए संकट
विश्वविद्यालयों की वेबसाइट पर फैकल्टी, शोध कार्य, प्लेसमेंट सेल और इंडस्ट्री टाई-अप से संबंधित जानकारियां भी सार्वजनिक नहीं थीं। पारदर्शिता की कमी ने न केवल छात्रों को गुमराह किया, बल्कि विश्वविद्यालयों की साख पर भी असर डाला। अब डिग्री की वैधता और भविष्य के अवसरों पर संकट खड़ा हो गया है।
राज्य में उच्च शिक्षा से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि इस कार्रवाई से अन्य निजी विश्वविद्यालयों को भी सबक लेना चाहिए और पारदर्शिता सुनिश्चित करनी चाहिए, ताकि छात्रों का भविष्य सुरक्षित रह सके।