द्विपक्षीय-वार्ता : बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के चार दिवसीय भारत दौरे के साथ ही चर्चा में आए दोनों देशों के 50 साल पुराने रिश्ते, कुछ समझौतों से मजबूत हो सकती है दोनों देशों की अर्थव्यवस्था
बांग्लादेश को आजाद हुए 50 साल पूरे हो गए हैं। इसी तरह भारत और बांग्लादेश के द्विपक्षीय संबंधों की उम्र भी पांच दशक से अधिक हो गई है। बांग्लादेश 1971 तक पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना जाता था। शेख मुजीबुर रहमान की अगुवाई में पाकिस्तान से विद्रोह हुआ। खूनी संघर्ष के बाद बांग्लादेश एक आजाद मुल्क के रूप में अस्तित्व में आया। बांग्लादेश को स्वतंत्र राष्ट्र की मान्यता देने वाला भारत पहला देश था। बांग्लादेश के गठन में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका के बाद तर्कसंगत तो यही था कि नए राष्ट्र बांग्लादेश और भारत के बीच दोस्ती गहरी होती। लेकिन बीते पांच दशक के इतिहास में इन रिश्तों में कई उतार-चढ़ाव देखे गएं। दोनों देशों के बीच संबंध किन्हीं आम पड़ोसियों सरीखे न होकर भाषा, संस्कृति, संगीत, साहित्य, इतिहास और कला के मज़बूत धागों में बुने हुए हैं पर हक़ीक़त में भारत-बांग्लादेश संबंध कभी उन ऊँचाइयों को नहीं छू पाए हैं जिनके शायद वो हक़दार हैं। भारत-बांग्लादेश के संबंधों के बीच वे मुद्दे जो आज भी अनसुलझे हैं और भविष्य की संभावनाओं से रू-ब-रू कराती सांध्य समाचार की खास रिपोर्ट ।
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना सोमवार को चार दिवसीय दौरे पर भारत पहुंची। उन्होंने राष्ट्रपति से मुलाकात की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनकी द्विपक्षीय वार्ता हुई। शेख हसीना ने कहा कि मैं पीएम मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व की सराहना करती हूं, जो हमारे द्विपक्षीय संबंधों को अतिरिक्त गति प्रदान करेगा क्योंकि दोनों देशों के संबंधों को पड़ोस की कूटनीति के लिए आदर्श माना जाता है। इस दौरान दोनों देशों के बीच समझौते की फाइलों को हस्तांतरित किया गया। कुशियारा नदी के जल के अंतरिम बंटवारे समेत कई समझौते पर हस्ताक्षर होने की उम्मीद है।
अब बात रिश्तों की….
बांग्लादेश के अस्तित्व में आने से लेकर अब तक दोनों देशों के बीच गरम-नरम वाले रिश्ते रहे। यदि हम अतीत की बात करें तो पाते हैं कि बांग्लादेश की स्वाधीनता के नायक और पहले राष्ट्रपति शेख़ मुजीबुर रहमान के कार्यकाल के दौरान दोनों देशों के बीच जिस गर्मजोशी के साथ दोस्ती की शुरूआत हुई वह उनकी हत्या के बाद से शनैः-शनैः ठंडी पड़ती गई। शेख़ मुजीब की बेटी, शेख़ हसीना वाजिद पहली बार 1996 में जब बांग्लादेश की प्रधानमंत्री बनीं तो भारत-बांग्लादेश संबंध बेहतर होने लगे थे। 2009 में शेख़ हसीना पुनः प्रधानमंत्री बनने पर उन्होंने बांग्लादेश की राजनीति और विदेश नीति को नये आयाम दिए। बांग्लादेश, भारत की नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी के तहत एक अहम साझेदार देश है। दोनों देशों के बीच सहयोग सुरक्षा, व्यापार, बिजली एवं ऊर्जा, परिवहन एवं कनेक्टिव…विज्ञान एवं प्रोद्यौगिकी, रक्षा, नदी, समुद्री मामलों सहित सभी क्षेत्रों में आपसी सहयोग रहा। ंभारत-बांग्लादेश व्यापार
यदि हम करोबार की बात करें तो दक्षिण एशिया में बांग्लादेश, भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार देश है। पिछले पांच वर्षों में दोनों देशों के बीच नौ अरब डालर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ है। वर्ष 2020-2021 में भारत के लिए बांग्लादेश चौथा सबसे बड़ा निर्यात स्थल बना। जबकि 2021-2022 में भारत का निर्यात 66 फीसदी बढ़कर 9.69 अरब डॉलर का हो गया। .
क्यों पैदा होती है रिश्तों में खटास?
2009 से दोनों देशों में आपसी सहयोग की कई मिसालें बनी हैं। भारत में चरमपंथी गतिविधियों पर अंकुश लगाने में बांग्लादेश ने कई बार सहयोग किया है। किसी ज़माने में असम में सक्रिय अलगाववादी संगठन यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ़ असम यानी उल्फा के बांग्लादेश में अनेक ठिकाने थे। पीएम बनते ही शेख़ हसीना इन संगठनों के खिलाफ़ कार्रवाई की साथ ही अनेक चरमपंथियों को भारत के हवाले किया।. लेकिन अब भी कुछ विषय ऐसे हैं जिन पर दोनों देश चाहते हुए भी कुछ खास नहीं कर पा रहे हैं। इन्हीं में सबसे अहम और महत्वपूर्ण मुद्दा है तीस्ता नदी का जल बँटवारा। 2011 में सचिव स्तर पर इस बंटवारे पर मुहर लग गई थी लेकिन बात अटक गई। उस दौरान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ढाका में तीस्ता नदी जल संधि पार हस्ताक्षर करने वाले थे लेकिन ममता बनर्जी सहमत नहीं थीं। .
दूसरी बात- बांग्लादेश, भूटान और नेपाल के साथ व्यापार बढ़ाने के लिए भारत से ट्रांज़िट रूट चाहता है। इन दोनों देशों का कोई भी हिस्सा समुद्र तट से नहीं मिलता। बांग्लादेश इन देशों को अपने बंदरगाहों से जोड़कर व्यापारिक रूप से आर्थिक लाभ उठाना चाहता है।
इसके अलावा बांग्लादेश दुनिया में भारत के बाद पटसन का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। निर्यात के मामले में वह पहले स्थान पर है। लेकिन भारत ने पटसन पर कुछ टैरिफ़ शुल्क लगा रखे हैं जिन पर बांग्लादेश को आपत्ति है। इस मामले में भारत का स्पष्ट तौर पर कहना है कि दोनों देशों के बीच नया मुक्त व्यापार समझौता हो जाए तो एंटी डंपिंग टैरिफ़ बेमानी हो जाएंगे।. इस शुल्क मुक्त व्यापार समझौता को व्यापक आर्थिक साझेदारी कहा जा रहा है। तो इसका समाधान संभव है.“।
तीस्ता नदी जल बंटवारा विवाद
हिमालय के सात हजार मीटर ऊँचे पाहुनरी ग्लेशियर से निकलने वाली 414 किलोमीटर लंबी तीस्ता नदी सिक्किम से भारत में प्रवेश करती है। पश्चिम बंगाल से होकर बांग्लादेश पहुंचकर ब्रह्मपुत्र नदी से मिल जाती है। केंद्र सरकार चाहती है कि भारत और बांग्लादेश के बीच तीस्ता नदी के बँटबारे पर एक समझौता हो। लेकिन पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार इसके विरोध में है।
आखिर क्यों है ममता का विरोध?
देश में नदियों पर राज्यों का अधिकार है। राज्यों की सहमति के बिना केंद्र सरकार दूसरे देश से संधि नहीं कर सकती। तीस्ता नदी के पानी को बांग्लादेश के साथ बॉंटने का मुद्दा अत्यंत संवेदनशील है। ममता बनर्जी इसका सार्वजनिक रूप से विरोध कर चुकी हैं। 2017 में कूचबिहार में हुई जनसभा में उन्होंने कहा था, “आमि बांग्लादेश के भालोबाशि, किंतु बांग्ला तो आगे… यानी मैं बांग्लादेश से प्यार करती हूँ, पर पश्चिम बंगाल तो उनसे पहले है.“ सही मायने में देखा जाए तो इस नदी के पानी के बंटबारे का विवाद, सिर्फ़ दो देशों के बीच विदेश नीति का ही विषय नहीं रह गया है। पश्चिम बंगाल भी इसमें एक अहम कड़ी है। ममता के हठ के चलते अब तक ये समझौता लटका हुआ है। हालांकि 1996 में ज्योति बसु की सरकार के समय गंगा के जल का बंटवारा हो गया था। जबकि तीस्ता का पानी बांग्लादेश के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। उसके उत्तरी इलाक़ों में पानी की किल्लत है। तीस्ता नदी ही इसे पूरा कर सकती है।
इन मुद्दों पर होनी है बात
अब दोनों देशों के बीच सुरक्षा सहयोग, निवेश, संवर्धित व्यापार संबंध, बिजली और ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग, साझा नदियों के जल बंटवारे, जल संसाधन प्रबंधन, सीमा प्रबंधन, मादक पदार्थों की तस्करी और मानव तस्करी से संबंधित मुद्दों को प्राथमिकता मिल सकती है। विदेश मंत्री के अनुसार, कुशियारा नदी की मुख्य धारा से पानी की निकासी, दोनों देशों के राष्ट्रीय रक्षा अकादमियों के बीच सहयोग, न्यायिक अधिकारियों के बीच सहयोग, रेल के आधुनिकीकरण और क्षमता निर्माण और सूचना के बीच सहयोग से संबंधित समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर करने की तैयारी चल रही है।
बांग्लादेश से जुड़ी खास बातें
-बांग्लादेश कई वर्षों पूर्व भारत के बंगाल का हिस्सा था।
-मध्य भारत पर शासन करने वाले साम्राज्यों द्वारा शासित था
-1526 से 1858 तक मुगलों ने शासन किया।
-अंग्रेज़ों के भारत आने पर उन्होंने बांग्लादेश पर भी कब्जा कर लिया।
- 1947 में भारत-पाकिस्तान की आज़ादी के बाद बंगाल का मुस्लिम बहुल क्षेत्र पाकिस्तान का हिस्सा बना और मना पड़ा ‘पूर्वी पाकिस्तान’।
- पूर्वी पाकिस्तान काफी विषम परिस्थितियों में था। वह न केवल भौगोलिक रूप से समकालीन पाकिस्तान से अलग था बल्कि जातीयता और भाषा के आधार पर भी पाकिस्तान से काफी अलग था। इस विषमता के कारण जल्द ही पूर्वी पाकिस्तान में संघर्ष शुरू हो गया।
- 1958 से 1962 के बीच तथा 1969 से 1971 के बीच पूर्वी पाकिस्तान मार्शल लॉ के अधीन रहा।
- 1970-71 के संसदीय चुनावों में पूर्वी पाकिस्तान के अलगाववादी दल अवामी लीग ने उस क्षेत्र को आवंटित सभी सीटें जीत लीं।
- पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान के मध्य वार्ता की विफलता के पश्चात् 27 मार्च, 1971 को शेख मुजीबुर रहमान ने पाकिस्तान से बांग्लादेश की स्वतंत्रता की घोषणा कर दी।
- तत्कालीन पश्चिमी पाकिस्तान ने अलगाव को रोकने के पूरे प्रयास किये और इसके विरुद्ध जंग की शुरुआत कर दी। परंतु भारत ने बांग्लादेशियों का समर्थन करने के लिये अपनी शांति सेना भेज दी।
- 11 जनवरी, 1972 को लंबे संघर्ष के पश्चात् बांग्लादेश एक स्वतंत्र संसदीय लोकतंत्र बन गया।