महाकाल मंदिर के बनने, टूटने और फिर बनने की कहानी:मुस्लिम शासकों ने तोड़ा; धार के राजा ने बनवाया, सिंधिया रियासत ने संवारा
महाकाल मंदिर पर कब-कब आक्रमण?
इतिहास पलटकर देखें तो उज्जैन में 1107 से 1728 ई. तक यवनों का शासन था। इनके शासनकाल में 4500 वर्षों की हिंदुओं की प्राचीन धार्मिक परंपराओं-मान्यताओं को खंडित और नष्ट करने का प्रयास किया गया। 11वीं शताब्दी में गजनी के सेनापति ने मंदिर को नुकसान पहुंचाया था। इसके बाद सन् 1234 में दिल्ली के शासक इल्तुतमिश ने महाकाल मंदिर पर हमला कर यहां कत्लेआम किया। उसने मंदिर भी नष्ट किया था। मुस्लिम इतिहासकार ने ही इसका उल्लेख अपनी किताब में किया है। धार के राजा देपालदेव हमला रोकने निकले। वे उज्जैन पहुंचते, इससे पहले ही इल्तुतमिश ने मंदिर तोड़ दिया। इसके बाद देपालदेव ने मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया।
…जब राजा सिंधिया का खून खौल उठा
मराठा राजाओं ने मालवा पर आक्रमण कर 22 नवंबर 1728 में अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया। इसके बाद उज्जैन का खोया हुआ गौरव पुनः लौटा। 1731 से 1809 तक यह नगरी मालवा की राजधानी बनी रही। मराठों के शासनकाल में उज्जैन में दो महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं। इनमें पहली- महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग को पुनः प्रतिष्ठित किया गया। दूसरा- शिप्रा नदी के तट पर सिंहस्थ पर्व कुंभ शुरू हुआ।
मंदिर का पुनर्निर्माण ग्वालियर के सिंधिया राजवंश के संस्थापक महाराजा राणोजी सिंधिया ने कराया था। बाद में उन्हीं की प्रेरणा पर यहां सिंहस्थ समागम की भी दोबारा शुरुआत कराई गई। इतिहासकारों के मुताबिक, महाकाल के ज्योतिर्लिंग को करीब 500 साल तक मंदिर के भग्नावशेषों में ही पूजा जाता रहा था। मराठा साम्राज्य विस्तार के लिए निकले ग्वालियर-मालवा के तत्कालीन सूबेदार और सिंधिया राजवंश के संस्थापक राणोजी सिंधिया ने जब बंगाल विजय के रास्ते में उज्जैन में पड़ाव किया, तो महाकाल मंदिर की दुर्दशा देख उनका खून खौल गया। उन्होंने यहां अपने अधिकारियों और उज्जैन के कारोबारियों को आदेश दिया कि बंगाल विजय से लौटने तक महाकाल महाराज के लिए भव्य मंदिर बन जाना चाहिए।
राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने अपनी आत्मकथा ‘राजपथ से लोकपथ पर’ में लिखा है कि राणोजी अपना संकल्प पूरा कर जब वापस उज्जैन पहुंचे, तो नवनिर्मित मंदिर में उन्होंने महाकाल की पूजा अर्चना की। इसके बाद राणो जी ने ही 500 साल से बंद सिंहस्थ आयोजन को भी दोबारा शुरू कराया।